atithi devo bhv

                                                                                                                                                                                                                                                                                       
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                           एक समय एक गांव में रामू नाम का एक किसान रहता था। रामू का एक छोटा -सा सुखी परिवार था। सभी में आपस में बहुत प्यार थाऔर सभी एक -दूसरे के साथ मिल -जुलकर ,एक -दूसरे की मदद करते हुए अपना जीवन व्यतीत करते थे। रामू के घर में उसकी समझदार पत्नी कमला ,उसका मेहनती पुत्र श्याम और उसकी सुंदर ,सुशील पुत्रवधु राधा रहते थे। चारो ही बहुत संतोषी स्वभाव के थे। जितना मिलता हमेशा उसी में संतोष करते थे इसलिए उनमे आपस में कभी लड़ाई नहीं होती थी। 

                        रामू बहुत धनवान किसान नहीं था और न ही उसके पास अपने पुरखो की धनसम्पति थी। जो भी थोड़ा बहुत था वे सब उसकी और उसके बेटे श्याम की मेहनत का नतीजा था। रामू के पास एक छोटा -सा खेत था ,जिसमे एक कुआँ था। खेत जोतने के लिए एक जोड़ी बैल , एक गाय और रहने के लिए स्वयं का पक्का मकान था। रामू अपने पुत्र के साथ मिलकर उस छोटे से खेत से अपना आराम से गुजर बसर करने लायक अनाज पैदा कर लेता था। उस अनाज को बेचकर वह अपने घर की सभी जरूरते पूरी करता था और बचे हुए रुपयों को भविष्य के लिए जमा करता था। उसकी पत्नी गाय का दूध निकालती ,उसको चारा -पानी देती और जितनी जरूरत होती उतना दूध निकालकर बचा हुआ बेच देती थी। राधा अपनी सास के काम में हाथ बँटाती थी। घर के सभी प्राणी अपने -अपने कार्यो को आपस में मिल -जुलकर ,बखूबी करते थे। इस प्रकार उनकी गृहस्थी सुखपूर्वक आराम से चल रही थी। 
                                                                     रामू की इस तरह चल रही हँसती गृहस्थी को अचानक किसी की नजर लग गई। शहर से लौटते समय श्याम भीषण बस दुर्घटना में बुरी तरह जख्मी हो गया। उसके जीने की कोई उम्मीद नहीं बची थी। उसे उसी समय शहर ले जाया गया। वहाँ डाक्टरों ने उसका ऑपरेशन करने के लिए कहा। रामू अपने एकलौते लड़के की जिंदगी बचने के लिए ऑपरेशन करवाने को तैयार हो गया। उस ऑपरेशन में बहुत -सारे रुपयों की जरूरत के लिए वह कुछ भी करने को तैयार था। रामू ने अपना खेत ,मकान ,पशु यहाँ तक कि औरतो के जेवर सभी कुछ बेच दिया और अब तक की जमा की हुई सारी पूँजी ,सब कुछ मिलकर उसने अपने पुत्र का ऑपरेशन करवाया। ऑपरेशन के बाद ,श्याम तो बच गया पर रामू के पास कुछ नहीं बचा था। 
                                                                                                 न तो खेती के लिए खेत ,न रहने के लिए मकान और न ही खरीदने के लिए कोई जमा -पूँजी। दुर्घटना के बाद एक तो श्याम वैसे अपाहिज हो गया था ,फिर सारी गृहस्थी का बोझ अकेले रामू के कंधो पर आ गया ,परंतु रामू ने हिम्मत नहीं हारी। वह अब भी अपने परिवार के पेट जैसे -तैसे करके भर ही देता था। किसान जब अपने खेतो से अनाज काट लेते थे ,तब वह खेतो में                                                                                                                                                                         गिरा अनाज बीनने का काम करता था। उस अनाज को वह बीनकर अपने घर ले आता था। उसे रामू की पत्नी कमला पीस लेती थी फिर उसकी रोटी बनाकर रोटी बनाकर रोटी चारो व्यक्ति मिल -बाँटकर खा लेते थे। रामू के परिवार के सभी लोग बहुत संतोषी स्वभाव के थे। इसलिए मुसीबत की इस कठिन घडी में भी सब ख़ुशी -ख़ुशी रहते थे। कभी किसी के चेहरे पर कोई परेशानी नहीं दिखाई देती थी। 
    एक बार गांव में भीषण अकाल पड़ गया। किसानो के खेतो में अनाज पैदा नहीं हुआ। चारो तरफ भुखमरी फैल गई। ऐसे में रामू अपने परिवार को एक वक्त का खाना भी बहुत मुश्किल से दे पाता था। सारा -दिन भटकने पर रामू को ही कही एक मुटठी अनाज ही मिल पाता था। एक बार रामू सारा दिन भटकता रहा ,लेकिन उसे केवल मुटठी -भर ही अनाज के दाने मिले। उन मुटठी -भर दानो को लेकर ,पीसकर ,भगवान के भोग लगाकर ,चार हिस्से कर आपस में बाँट लिए। 
                                                                         वह चारो अभी भोजन करने बैठे ही थे कि उसी समय उनके द्वार पर एक भूखा ब्रह्मण अतिथि बन -कर आया। रामू बड़े आदर के साथ उसे अंदर लाया और उसे आसन पर बैठाया। उसके हाथ -पैर धोए और अपने हिस्से का भोजन उस ब्रह्मण को दे दिया। इतने थोड़े -से भोजन से भला उस अतिथि ब्रह्मण का पेट कैसे भरता ? तभी रामू की पत्नी वहाँ आयी और उसने अपने हिस्से का भोजन भी उस अतिथि को दे दिया। इससे भी अतिथि का पेट नहीं भरा। तब रामू का बेटा श्याम लाठी के सहारे आया और उसने अपने हिस्से का भोजन भी उस अतिथि को दे दिया। अतिथि ब्राह्मण का पेट अब भी नहीं भरा था। 
    अंत में श्याम की पत्नी राधा अपने हिस्से का भोजन अतिथि को देने आई। उसे देख रामू ने कहा ,"बेटी ! तुम भूख से बहुत दुबली हो गई हो और अब इस तरह उपवास करने से तो तुम्हारा जीवन ही कठिन हो जाएगा। इसलिए तुम अपना हिस्सा रहने दो। "राधा ने कहा ,"पिताजी आपने ही तो सिखाया है कि अतिथि साक्षात भगवान का रूप होते है ,अतिथि की सेवा करना परमधर्म है। मै अपने प्राणो के लिए अपने धर्म को नहीं भूल सकती। अपने इस नशवर जीवन का लोभ कर अपने अतिथि को भूखा कैसे जाने दू ? पिताजी आप लोगो ने ही मुझे धर्म की राह दिखाकर उस पर चलना सिखाया है और आज जब जरूरत पड़ने पर मै धर्म की राह पर चल रही हूँ तो आप ही मुझे रोक रहे है। कृपा कर मुझे भी अपने हिस्से का भोजन ब्राह्मण देवता को देने की अनुमति प्रदान करे। "                     अपने पुत्रवधु की बात सुनकर रामू ने उसे अपना भोजन देने के लिए अनुमति दे दी। ब्राह्मण ने राधा के हिस्से का खाना खाकर पीने के लिए पानी माँगा। रामू बर्तन लेकर बाहर कुँए से पानी लेने गया। जब पानी लेकर लौटा तो उसने देखा उसकी सारी झोपडी प्रकाश से भरी हुई थी। यह सब देखकर रामू बहुत आश्चर्य -चकित हुआ। उसने देखा जिस आसन पर अतिथि बैठा था। वह आसन सोने का बन गया। पूरी झोपडी में जगह -जगह सोना बिखरा पड़ा था। यह सब देखकर रामू की आँखे फ़टी की फ़टी रह गयी। उसने देखा कि वह अतिथि और कोई नहीं साक्षात भगवान विष्णु थे। रामू  ने दौड़कर उनके चरण पकड़ लिए। 
                                भगवान विष्णु बोले ," हम तुम्हारी अतिथि सेवा से बहुत प्रसन्न हुए है। माँगो क्या वरदान मांगना है ?"
                              रामू ने कहा ," भगवान अगर आपको मुझे कुछ देना है तो मुझे आश्रीवाद दीजिये कि मै सदा अतिथियों का स्वागत कर सकूँ। " भगवान विष्णु ने तथास्तु कहा और अन्तध्यार्न हो गए। 
                     


इस कहानी से हमे यह शिक्षा मिलती है कि हमे सदैव अपने अतिथित का आदर -सत्कार करना चाहिए क्योकि अतिथि भगवान का रूप होता है। 






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