Bhumkap
भूंकप
भूचाल या भूकंप का नाम सुनते ही लोग कांप उठते है। भकंप आने पर पर्थ्वी हिलने लगती है। जगह -जगह से धरती फट जाती है।
करोड़ो वर्ष पहले पृथ्वी भी सूर्ये की तरह आग का एक दहकता हुआ विशाल गोला थी। तब इस पर किसी प्रकार की हरयाली या जीवन का कोई चिन्ह न था। फिर पृथ्वी की गर्मी कम होने लगी। धीरे -धीरे इसकी ऊपरी परते ठंडी होनी लगी। इतनी ठंडी की ऊपरी परत पर पेड़ -पौधे उग आए। नदियाँ बहने लगी और समुंद्र लहराने लगे। आगे चलकर अनेक प्रकार के जीव इस पर उतपन हुए और यही रहने लगे। धरती की ऊपरी मोटी परत तो ठंडी हो गयी ,किन्तु इसकी भीतरी तहो में आज भी आग दहक रही है।
यह आग इतनी भयंकर है कि इसमें पथर ,लोहा आदि गल जाते है। भीतरी तहो में खोलता हुआ जो तरल पदार्थ है उसे '' मैग्मा '' कहते है। इसी मेग्मा पर पृथ्वी का पूरा भार टिका हुआ है। इस पर हमेशा दबाव पड़ता रहता है।
कभी -कभी वर्षा का पानी पृथ्वी की दरारों में इस भीतरी आग तक पहुंच जाता है। इससे बड़ी तेज भाप बनती है। इस भाप में बड़ी ताकत होती है। यह बहार आने की कोशिश करती है। धरती की मोटी परतो को फोड़कर जब यह निकलती है,तो पृथ्वी हिलने लगती है। इसी को भूचाल या भूंकप कहते है।
भूंकप से पृथ्वी पर बड़े -बड़े परिवर्तन हो जाते है। कभी -कभी तो इससे नगर के नगर धरती में समा जाते है। कभी -कभी किसी भयंकर भूचाल के बाद नदियों का स्थान पहाड़ और पहाड़ो का स्थान झील और समुंद्र ले लेते है। कभी -कभी भूंकप से पहाड़ भी हिल जाते है। पहाड़ो के नीचे और धरती के जिन बड़े -बड़े छेदो में से यह बहार निकल पाता है ,उन्हें ज्वालामुखी कहते है। ज्वालामुखी अर्थात आग निकलने वाला मुख। इनसे जो पदार्थ बहार निकलता है ,उसे लावा कहते है।
ज्वालामुखी से सदैव लावा नहीं निकलता। पुराने होकर ज्वालामुखी सो जाते है। ज्यादा समय बीत जाने पर लोग भूल भी जाते है कि उस जगह ज्वालामुखी भी था।
लेकिन कभी -कभी अचानक ही प्रसुप्त अर्थात सोया हुआ ज्वालामुखी जाग भी जाता है। उसके मुँह से भाप ,धूल मलबा और लावा निकलने लगता है। जापान ,इंडोनेशिया ,चीन ,रूस और चिली ऐसे देश है जहां भूंकप बहुत तभाई मचा चूका है। सबसे ज्यादा भूकंप जापान में आते है।
भारत में भी भूंकप के झटके आते रहते है। गुजरात में 26 जनवरी ,सन 2001 में भूंकप ने भयंकर तभाई मचाई थी। इसमें सैकड़ो लोग मारे गए थे और गाँव के गाँव तब्हा हो गए थे।
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