Guru nanak aur mrdana

गुरु नानक देव सिक्ख धर्म के प्रसिद्ध गुरु है। उनके जीवन का एक प्रेरणादायी प्रसंग यहाँ दिया जा रहा है। 

एक बार गुरु नानक और अपने पिरय शिष्य मर्दाना के साथ यात्रा पर निकले। शहर तथा जंगल को पार करके वे एक गांव में पहुंचे। उस गांव के लोग बहुत दुष्ट व अत्याचारी थे। वे न तो किसी का आदर -सत्कार ही करते थे और न ही किसी की अच्छी बातो को मानते थे।                                                                                                                 उस गांव के लोगो ने गुरु नानक व उनके शिष्य को देखा ,किंतु उन्होंने उनको न तो भोजन दिया और न पानी। यहाँ तक कि उन्हें किसी व्यक्ति ने ठहरने के लिए आश्रय भी नहीं दिया।                                                                                            गांव छोड़ते समय गुरु नानक ने कहा -" हे ईश्वर यह गांव इसी तरह बना रहे और यहाँ के लोग भी यही रहे। " गुरु नानक देव के ये शब्द सुनकर मर्दाना को बड़ा आश्चर्य हुआ ,लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। वे उस गांव से थोड़ा आगे चले। आगे चलकर उन्हें एक दूसरा गांव मिला। गांव में पहुंचकर उन्होंने देखा कि उस गांव के लोग बहुत नरम और अतिथि -पूजक स्वभाव के है। गांव में घर -घर भजन -कीर्तन चलता रहता है और वहाँ के लोगो का जीवन सत्पुरषो के जैसा है।                                                                                                                                                                          जब गुरु नानक गांव में पहुंचे तो वहाँ के लोगो ने उन्हें आदर के साथ पलको पर बैठा लिया और उनका भव्य आदर -सत्कार किया। गुरु नानक व  मर्दाना की बहुत आवभगत हुई। भोजन आदि के पस्चात गांव के सभी लोगो ने गुरु नानक के उपदेश सुने और उनको अपने जीवन में उतारने का संकल्प लिया।                                                                                                                                                                                                                                उस गांव से जब गुरु नानक विदा होने लगे तो बोले -" भगवान करे ,यहाँ के लोग इधर -उधर बिखर जाए। "मर्दाना अब अपने आप को रोक न सका। वह गुरु नानक से बोला -"गुरुदेव ! जिस गांव में आपका अपमान हुआ और लोगो ने भोजन तो भोजन ,पानी तक के लिए नहीं पूछा ,उस गांव को तो चलते समय आपने ' हे ईश्वर यह गांव इसी तरह बना रहे और यहाँ के लोग भी यही रहे। ' का आश्रीवाद दिया और इस उत्तम गांव को ,जहाँ आपका और मेरा अभिन्दन हुआ ,इधर -उधर बिखर जाने का शाप दे रहे है! आखिर यह क्या रहस्य है !" गुरु नानक मुस्कराते हुए कहा -"पिरय मर्दाना ,इसमें कोई रहस्य नहीं है। जब मैंने उस गांव को बने रहने का आश्रीवाद दिया ,तो मेरी इच्छा यह थी की बुरे लोग व उनकी बुराइयाँ उसी छोटी -सी जगह में सीमित रहे व संसार की किसी और जगह न फैले। 
      जब मैंने यह अच्छा गांव छोड़ा तो मेरी यही कामना है कि इस संसार में फैल जाए ,जिससे सारे संसार में सुख -शांति और खुशहाली फैल जाए। " गुरु नानक की बाते सुनकर मर्दाना की आँखे खुल गई और गुरु नानक के पैरो में गिर गया। 

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