har ki jeet
किसी के साथ विश्वासघात करना बहुत बुरी बात है। यही इस कहानी में हम बताने की चेस्टा कर रहे है।
माँ को अपने बेटे , सहूकार को अपने देनदार और किसानो को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद प्राप्त होता है , वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर होता था।
भगवदभजन से जो समय बचता , वह घोड़े को अर्पण हो जाता। वह घोडा बहुत ही सुंदर और बलवान था। इसके जोड़ का घोडा पुरे इलाके में न था। बाबा भारती इसे सुल्तान कहकर पुकारते थे। अपने हाथ से खरहरा करते , खुद दाना खिलते और देख -देखकर प्रसन्न होते थे। उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया था -रुपया ,माल ,जमीन।
अब गांव के बहार छोटे से मंदिर में रहते और भगवान का भजन करते थे। जब तक संध्या समय सुल्तान पर चढ़कर आठ दस मील का चककर न लगा लेते , तब तक उन्हें चैन न आता।
खड़क सिंह उस इलाके का प्रसिद्ध डाकू था। लोग उसका नाम सुनकर ही काँपते थे। होते -होते सुल्तान की कीर्ति उसके कानो तक भी पहुंची।
उसका ह्रदय उसे देखने के लिए अधीर हों उठा। एक दिन वह दोपहर के समय बाबा भारती के पास पहुंचा और नमस्कार करके बैठ गया।
खड़क सिंह ने सिर झुकाकर उत्तर दिया -" आपकी दया है। "
"कहो इधर कैसे आना हुआ ? "
"सुल्तान की चहा खींच लायी। "
"विचित्र जानवर है। देखोगे प्रसन्न हो जावेंगे। "
"मैंने भी बड़ी प्रस्सना सुनी है। "
"उसकी चाल तो तुम्हारा मन मोह लेगी। "
"कहते है ,देखने में भी बड़ा सुंदर है। "
बाबा भारती और खड़क सिंह दोनों अस्तबल में पहुंचे। बाबा ने घोडा दिखाया। उसने सहस्त्रो घोड़े देखे थे ,परन्तु ऐसा घोडा उसकी आँखो से कभी गुजरा तक न था। सोचने लगा , भाग्य की बात है। ऐसा घोडा खड़क सिंह के पास होना चाहिए। इस साधु को ऐसी चीजों से किया मतलब ?
खड़क सिंह अधीरता से बोले -"परन्तु बाबा जी ,इसकी चाल न देखी तो किया देखा। "
बाबा जी मनुष्य थे। अपनी वस्तु की प्रसंसा दूसरे के मुख से सुनने के लिए उनका हृदय भी अधीर हो गया।
घोड़े को खोलकर बाहर लाए और उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगे। एकाएक उचककर सवार हो गए। घोडा वायुवेग से उड़ने लगा। उसकी चाल देखकर खड़क सिंह के ह्रदय पर सांप लोट गया। वह डाकू था और जो वस्तु उसे पसंद आ जाए , उस पर वह अपना अधिकार समझता था। उसके पास बाहुबल था ,रुपया था और आदमी भी थे। जाते -जाते वह बोला -" बाबाजी , यह घोडा मै आपके पास रहने न दूँगा। "
बाबा भारती डर गए। अब उन्हें रात में नींद न आती थी। सारी रात अस्तबल की रखवाली में काटने लगे। प्रति छण खड़क सिंह का भय रहता। परन्तु कई मास बीत गए और वह न आया। यहाँ तक कि बाबा भारती लापरहवा हो गए इस भय को स्वपन के भय की तरह मिथ्या समझने लगे।
संध्या का समय था। बाबा भारती सुल्तान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे थे। इस समय उनकी आँखो में चमक थी ,मुख पर प्रसन्नता थी। कभी घोड़े के शरीर को देखते ,कभी रंग को और मन में फुले न समाते थे।
सहसा एक और से आवाज आयी , " ओ बाबा ! इस कगंले की बात भी सुनते जाना। "
आवाज में करुणा थी। बाबा ने घोड़े को थाम लिया। देखा एक अपाहिज वृक्ष की छाया में पड़ा करहा रहा है। बोले --" क्यों , तुम्हे क्या कस्ट है ? "
अपाहिज ने हाथ जोड़कर कहा --" बाबा में दुःखिया हूँ , मुझ पर दया करो। रामावाला यहाँ से तीन मील है , मुझे वहाँ जाना है। घोड़े पर चढ़ा लो , परमात्मा तुम्हारा भला करेगा। "
" वहाँ तुम्हारा कौन है ?"
" दुर्गादत्त वेदय का नाम आपने सुना होगा। मुझे उन्ही के पास जाना है। "
बाबा भारती ने घोड़े से उतरकर अपाहिज को घोड़े पर बैठा लिया और स्वयं उसकी लगाम पकड़कर धी रे -धीरे चलने लगे। शहसा उन्हें एक झटका -सा लगा और लगाम हाथ से छूट गई। उनके आचार्य का ठिकाना न रहा ,जब उन्होंने देखा कि अपाहिज तनकर घोड़े की पीठ पर बैठा है और घोड़े को दौड़ाये लिए जा रहा है। उनके मुख से भय ,विस्मय और निराशा से मिली हुई चीख निकल गयी। यह अपाहिज खड़क सिंह डाकू था।
बाबा भारती कुछ देर चुप रहे उसके पस्चात कुछ निश्च्य करके जोर से चिलाकर बोले --" जरा ठहर जाओ खड़क सिंह !"
" बाबा घोडा अब न दूंगा। "
" अब घोड़े का नाम न लो। मै तुमको इसके विषय में कुछ न कहूंगा। मेरी प्राथना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना। "
खड़क सिंह का मुख आश्चर्य से खुला रह गया। उसका विचार था कि उसे इस घोड़े को लेकर वहाँ से भागना पड़ेगा ,परन्तु बाबा भारती ने स्वयं उससे कहा कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना। इससे किया परयोजना सिद्ध हो सकती है ?
खड़क सिंह ने बहुत सोचा ,बहुत सिर मारा ,परन्तु कुछ समझ न सका। हारकर उसने अपनी आँखे बाबा भारती के मुख पर गड़ा दी और पूछा --" इसमें आपको किया डर है ?"
बाबा भारती ने उत्तर दिया --" लोगो को यदि इस घटना का पता लग गया तो वह किसी गरीब पर विस्वास न करेंगे ?"
और यह कहते -कहते उन्होंने सुल्तान की ओर से इस तरह मुख मोड़ लिया ,जैसे उनका उससे कोई सबंध ही न था। बाबा भारती चले गए ,परन्तु उनके शब्द खड़क सिंह के कानो में उसी प्रकार गुंज रहे थे।
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