schcha hira

प्राय सभी को अपनी संतान अच्छी लगती है ,किंतु वास्तव में प्रशसनीय कौन है ?आइए जाने ,इस कहानी को पढ़कर -

चार सहेलियाँ थी -माधुरी ,विजया ,कुंती और सरला। एक ही गांव में रहती थी। खेत -खलिहान ,पानी -पनघट कहीं -न -कहीं मिल ही जाती और जितना समय मिलता बाते करती रहती।                                                                                 एक शाम की बात है। चारो सहेलियाँ अपने -अपने घड़े लेकर कुँए पर पहुंची ,कुँए की पक्की जगत पर ही बैठकर आपस में इधर -उधर की बातचीत करने लगी। करते -करते बात बेटो पर जा पहुंची। 

                                                         माधुरी कहने लगी -" भगवान सब को मेरे जैसा ही बेटा दे। मेरा बेटा लाखो में एक है। वह बहुत अच्छा गाता है। उसके गीत को सुनकर कोयल और मैना भी चुप हो जाती है। लोग बड़े चाव से उसका गीत सुनते है। सच में मेरा बेटा तो अनमोल हीरा है। "
                                                                                           यह सुनकर विजया ने कहा -"बहन ,मै तो समझती हूँ कि मेरे बेटे की बराबरी कोई नहीं कर सकता। वह बहुत ही शक्तिशाली और बहादुर है। वह बड़े -बड़े पहलवानो को भी पछाड़ देता है। चोर -गुंडे उसके नाम से ही डरते है। मै तो भगवान से कहती हूँ कि वह मेरे जैसा बेटा सबको दे। "
       दोनों की बात सुनकर कुंती भला क्यों चुप रहती ?
                    वह अपने को रोक न सकी। वह बोल उठी -रहने भी दो बहन ,मेरा बेटा क्या है ,साक्षात बृहस्पति का अवतार है। वह जो कुछ पढ़ता है ,एकदम याद कर लेता है। ऐसा लगता है मनो उसके कंठ में सरस्वती का वास हो। बड़े -बड़े विद्वान् उसका लोहा मानते है। "
                                           सरला चुपचाप बैठी रही। माधुरी ने उसे टोकते हुए कहा -"क्यों बहन ,तुम क्यों नहीं कुछ बोल रही हो ? तुम्हारा भी तो बेटा है। तुम भी अपने बेटे के बारे में कुछ बताओ। "सरला ने बड़े ही सहज भाव से कहा -"मै अपने बेटे की क्या प्रंशसा करू। असल में वह आपके बेटो जैसा नहीं है। इसलिए चुप हूँ। "
                                                                           जब वे सिर पर घड़े रखकर लौटने लगी ,तभी किसी के गीत का मधुर -स्वर सुनाई पड़ा। गीत सुनकर सभी सहेलियाँ ठिठक गई। माधुरी को समझते देर न लगी कि वह मधुर स्वर उसी के बेटे का है। वह बोल उठी -"मेरा हीरा गा रहा है। तुम लोगो ने सुना ,उसका कंठ कितना मधुर है !" 
 तीनो सहेलियाँ बड़े ध्यान से पहली सहेली के बेटे को देखने लगी। वह गीत गाता हुआ उसी रास्ते से निकल गया। उसने अपनी माँ की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। 
                                                                                                 अभी पहली सहेली का बेटा थोड़ी -ही दूर गया होगा कि एक पहलवान हाथी की भांति कदम रखता उधर से आता दिखाई दिया। विजया उसे देखकर बड़े ही गर्व से बोली -"देखो ,वह मेरा लाडला बेटा आ रहा है। शक्ति और सामर्थ्य में इसकी बराबरी कौन कर सकता है ?"                                                         
             वह बाते ही कर रही थी कि उसका बेटा भी उसकी ओर ध्यान दिए बगैर निकल गया। 
    थोड़ी ही देर में कुंती का बेटा भी कुछ संस्कृत के श्लोक बोलता हुआ उधर से निकला। कुंती ने बड़े गदगद स्वर से कहा -"देखो ,यही है मेरी गोद का हीरा। "उसका बेटा भी माँ की ओर देखे बिना आगे बढ़ गया। 
                             संयोग की बात थी कि सरला का बेटा भी उधर से आ निकला। वह बहुत ही सीधा -साधा और सरल प्रकृति का लग रहा था। उसे देखकर सरला ने कहा -"बहन ,यही मेरा बेटा है। "तब तक उसका बेटा पास आ पहुंचा। अपनी माँ को देखकर वह रुक गया और बोला -"माँ ,लाओ मै तुम्हारा घड़ा घर पहुंचा दू। "उसकी माँ ने मना करते हुए कहा -"तू जा। मै घड़ा स्वयं लेकर चली जाउंगी। "माँ ने मना करने पर भी उसने माँ के सिर से पानी का घड़ा उतारकर अपने सिर पर रख लिया और घर की ओर चल पड़ा। 
                                                             तीनो सहेलियाँ बड़े ही आस्चर्य से सरला के बेटे को देखती रही। एक वृद्ध महिला बहुत देर से इन सभी की बातें सुन रही थी और वह इनके बेटो को भी देख चुकी थी। वह इनके पास आकर बोली -देखती क्या हो ?सच्चा हीरा वही है जिसे अपनी माँ के कष्टों की चिंता है। "

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