vidhya aur budhi

इस कहानी में हमे यह शिक्षा मिलेगी कि केवल किताबी ज्ञान ही नहीं होना चाहिए बल्कि उसके साथ -साथ बुद्धिमान भी होना चाहिए। 

एक गांव में चार हम उम्र के लड़के रहते थे ,केशव ,माधव ,हरि और गोपाल। चारो साथ -साथ खेलते ,खाते और साथ -साथ पढ़ते। चारो में आपस में बहुत प्रेम था। चारो लड़के पढ़ने में बहुत होशियार थे। 
      धीरे -धीरे चारो लड़के बड़े होने लगे। पढ़ाई के प्रति उनका लगाव देखकर चारो के माता -पिता ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए काशी भेजने का निर्णय लिया। 
                चारो लड़के काशी जाकर अपनी -अपनी इच्छा के अनुसार विषय चुनकर ,उन विषयो की खूब मन लगाकर पढ़ाई करने लगे। केशव ने व्याकरण विषय चुना तो माधव ने ज्योत्षी। हरि को लोगो का इलाज करने का बहुत शोक था ,इसीलिए उसने वैधक और हमेशा चारो दोस्तों के बीच किसी बात को लेकर हुए विवाद को सुलझाने वाले गोपाल ने न्याय विषय चुना। कई वर्ष बाद खूब पढ़ लिखकर जब चारो अपने -अपने विषय के पूर्ण ज्ञाता बन गए तब वह वापस अपने गांव की ओर चल दिए। 
                               चलते -चलते मार्ग में एक नगर पड़ा। दोपहर का समय था। एक धुप बहुत तेज थी फिर चलते -चलते चारो बहुत थक गए थे। इसलिए चारो ने शाम तक वही विश्राम करने का निर्णय लिया। चारो  नगर में जाकर एक धर्मशाला में ठहर गए और आराम करने लगे। जिस नगर में वे चारो ठहरे हुए थे उस नगर का राजा विद्वानों का बहुत सम्मान करता था। जब राजा को उन चारो की शिक्षा के बारे में पता चला तो राजा ने उन चारो के लिए दाल ,साग -सब्जी आदि सामान खरीदने के लिए रुपया और एक घोडा भिजवाया। 
चारो मित्र ने घोड़े के ऊपर अपने बिस्तर ,पुस्तके ,पूजा -पाठ आदि का सामान लाद दिया। घोड़े का तो उन्होंने उपयोग कर लिया। जब बारी थी रूपये से सामान लाने की। चारो मित्रो ने मिलकर तय किया "अगर एक साथ बाजार जाकर एक -एक सामान खरीदेंगे तो बहुत देर हो जाएगी। इससे तो अच्छा है चारो एक -एक काम बाँट लेते है और अपनी -अपनी दिशा में जाकर काम कर आते है। "
                                              चारो ने एक -एक काम बाँट लिया। माधव घोड़े को चराने ले गया। हरि मंडी में सब्जी लेने गया। गोपाल ने कहा कि वह घी खरीदने जाएगा और केशव ने कहा कि वह सभी का खाना बनाएगा। चारो अपने -अपने काम के हिसाब से अपनी -अपनी राह पर चले गए। सबसे पहले गोपाल घी खरीद -कर लौटने लगा। लौटते समय अचानक उसके मन में यह विचार आया , 'बर्तन के सहारे घी टिका है या घी के सहारे बर्तन ?    उल्टा करते ही सारा घी जमीन पर बिखर गया। आस -पास बैठे लोग गोपाल की इस मूर्खता को देखकर हँसे। गोपाल को बहुत गुस्सा आया। वह पैर पटकता हुआ वहाँ से वापस आ गया। 
                                                                                      उधर हरि सब्जी मंडी पहुंचा। वहाँ जाकर उसने देखा तोरी ,करेले ,भिंडी ,पालक ,बैंगन ,टमाटर आदि बहुत सी सब्जिया बिक रही थी। परंतु उसने देखा कि सभी सब्जियों में कुछ न कुछ दोष अवश्य था। वह बिना कोई सब्जी लिए वापस लौट आया। रास्ते में एक स्त्री नीम की दातुन बेच रही थी। हरि ने उस स्त्री के पास जाकर उसकी नीम देखी। उसे उसकी नीम हर प्रकार से ठीक लगी। उसने उसके पास जितने भी पैसे थे ,सब उस स्त्री को देकर नीम की दातुन खरीद ली। हरि बहुत खुश था। हरि जैसे मुर्ख  ग्रहाक पाकर स्त्री बहुत खुश थी। केशव ने चावल -दाल मिलाकर खिचड़ी पकाने के लिए चूल्हे पर चढ़ा दी। जब खिचड़ी पकने लगी तो 'खदबद -खदबद 'की आवाज होने लगी। केशव चूँकि व्याकरण का ज्ञाता था और व्याकरण के हिसाब से 'खदबद -खदबद 'अशुद्ध सवांद होता है इसलिए वह अशुद्ध है' सत्यवद 'होना चाहिए ,ऐसा कहते हुए कलछी से पतीले को पीटने लगा। उसे पतीले को पीटते बहुत देर हो गई परंतु उसमे से 'खदबद 'की आवाज आनी बंद नहीं हुई तो केशव आग -बबूला हो गया और गुस्से में आकर उसने पतीले को आग से उतारकर कूड़े में उलट दिया। 
                                                                                                                       माधव घोडा चराने ले गया। घोडा चर रहा था तो माधव ने सोचा ,"क्यों न पेड़ के निचे बैठकर आराम कर लिया जाए। ' वह पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर आराम करने लगा। थोड़ी देर में उसे नींद आ गयी। घोडा चरते -चरते एक पहाड़ी के दूसरी तरफ चला गया। माधव की आँख खुली तो उसने देखा घोडा वहाँ नहीं था। उसने अपनी ज्योतिष विद्या से जान लिया कि घोडा कहाँ गया है। उसने मन ही मन सोचा ,"जो घोडा इतनी देर पहाड़ी पर चढ़कर दूसरी तरफ उत्तर गया है वह अब तक ना जाने कितनी दूर चला गया होगा। अब उसका पीछा करना बेकार है। '  ऐसा सोचकर बिना घोड़े को खोजे वह वापस धर्मशाला में लौट आया। 
             धर्मशाला में आकर चारो मित्र एक -दूसरे से मिले और अपनी -अपनी आप -बीती सुनाई। चारो बहुत थक भी गए थे इसलिए भूखे ही सो गए। अभी वे सोये थे कि वहाँ राजा का सैनिक आया। उसने कहा ,"चलो ,आप सभी को राजा ने बुलाया है। "सैनिक चारो को लेकर राजा के पास जा रहा था तभी उसने देखा कि उसके पास वह घोडा नहीं है ,जो वो उन चारो को सुबह देकर गया था। सैनिक ने उनसे घोड़े के बारे में कुछ नहीं पूछा और चुपचाप राजा के पास ले गया। 
                                                         राजा ने उन चारो को देखा लेकिन घोड़े को नहीं देखा था ,उनसे घोड़े के बारे में पूछा उन चारो ने राजा को अपना सारा हाल सुनाया। चारो का हाल सुनकर राजा ने पहले चारो को भोजन करवाया। जब चारो ने भर -पेट भोजन कर लिया तब राजा ने उनको समझते हुए कहा ," विद्या का अर्थ यह नहीं कि तुम बुद्धि का प्रयोग बंद कर दो। विद्या बड़ी है ,परंतु बुद्धि उससे भी बड़ी है। बिना सोचे -विचारे काम करोगे तो कभी सफलता नहीं मिलेगी। 





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