Viny

विनय 

विनय का अर्थ है -नर्मता ,स्वभाव की कोमलता। घमंड न होना ही नर्मता है। मनुष्य को सचमुच मनुष्य बनाने के लिए जिन अच्छे -अच्छे गुणों की जरूरत होती है ,उनमे 'विनय 'एक मुख्य गुण है। विनय शीतल जल है। जहाँ विनय रूपी जल है ,वहाँ क्रोध की आग कभी नहीं पनपती। यह जल दूसरों को भी क्रोध की ज्वाला में भस्म होने से बचाता है। 
आप अपने हर्दय से अभिमान को विदा करो। चित में कोमलता को आसन जमाने दो। वाणी में मिठास और सच्चाई को बसाओ ,तब विनय की असली झलक आप में दिखाई देगी। 
    जब बदलो का झुण्ड आकाश में उमड़ पड़ता है। तब आकाश बदलो में छिप जाता है। उसी तरह जब मनुष्य         में विनय का विकाश हो जाता है ,तब उसके सारे दोषो पर पर्दा पड़ जाता है। 
                 विध्या से बुद्धि बढ़ती है। बुद्धि से विनय उपजता है। जिसके पास बुद्धि है ,परन्तु विनय नहीं है ,समझो                    उसके पास मणि तो है ,लकिन उसमे चमक नहीं है। जो विनयी है ,उसके पास सभी गुण अपने आप 
                        जगमगाते है। नदी -तट की घास ,उसकी उमड़ी हुई तेज धारा के सामने सिर नवा लेती है। धरा 
                         कम होने पर पुनः खड़ी हो जाती है। जिस प्रकार तट पर तनकर खड़ा रहना वाला पेड़ ,जड़ से उखड़कर धारा की चपेट में बह जाता है। ठीक उसी प्रकार बड़ो के समान में मतवाले होकर अकड़ने वालो का यही हाल होता है। दुष्टो पर भी विनती भाव से शासन किया जा सकता है। धीरे -धीरे उन्हें भी विनय का पाठ पढ़ाया जा सकता है। विनयी मनुष्य को शांत भाव से रास्ते पर चलना चाहिए। धीर -गभीर चाल का प्रभाव अन्य लोगो पर भी पड़ता है। सब लोगो से सरल और नर्म वचन बोलना सीखो। मीठा बोलना जग जग जितने जैसा होता है। बड़ो का आदर समान करो। अपने से बड़ो व गुरुजनो का आदर करने से विनय में बड़ोतरी होती है। विनय का मुकुट सिर पर रख लेने से आप गुणों के राजा बन जाओगे। 
        जब पेड़ फलो से लद जाता है ,तब अपना मस्तक निचे की ओर झुका लेता है। जब कोई लता फूलो से लद 
         जाती है ,तब ऊपर से निचे की और झुक जाती है। जल से भरे मेघ पृथ्वी पर टपकते हुए नजर आते है। 
               ऐसा होने से पेड़ ,लता और मेघो की सुंदरता चौगनी बढ़ जाती है। 


            "बरषि मेघ भूमि निराय ,जथा जबिह बुध विद्या पाए "

इसी प्रकार लोगो के रूप और ज्ञान की शोभा भी अधिक बढ़ जायगी ,तब विनय को अपने गले का हार बना लोगे। 
 
प्रायः यह देखा गया है कि विध्या -बुद्धि वाले मनुष्य जहाँ कठनाई से पहुंचते है ,वहाँ विनयी लोग बिना कठनाई के ही पहुँच जाते है। जो व्यक्ति डींग हाँकता और ऐठता हुआ चलेगा ,उसे हर जगह से मुँह लटकाए खाली हाथ लौटना पड़ेगा। 
    
     मगर विनयी होने का मतलब यह नहीं की वीरता और निर्भीयता से बिलकुल हाथ धो लिया जाए। डरपोक             बनकर और अपने आप को नीचा या हीन समझकर सबके सामने अदब करने को ही विनय कहते है। 
     ऐसा सपने में भी सोचना बहुत बड़ी भूल हो होगी ,अपमान को सहकर चुप बैठे रहना विनय नहीं है। जिस  विनय में वीरता नहीं ,उसे कायरता कहते है। कमजोर दिल का आदमी विनयी नहीं हो सकता। जिसका मन अपने वश मे नहीं है ,वह दूसरो को अपने गुण से वश में नहीं कर सकता है। शिष्ता और सुशीलता के साथ ,प्रसन्न मन से दूसरो के सामने विनय प्रकट करना ही मनुष्य के लिए उचित है। ऐसा करने से ही आत्मा -गौरव की रक्षा होगी। अपने ही मुँह अपनी प्रसंसा करने से प्रतिसठा नहीं मिलती। अपनी बड़ाई अपने आप करना विनयी होने का लक्ष्ण नहीं है। विनयी व्यक्ति तो अपनी प्रसंसा सुनकर संकोच में पड़ जाता है। जब तुम अपने गुणों को छिपाए रहोगे ,तब अपने आप सब जगह आपके गुणों की चर्चा होने लगेगी। जब आप ओछे आदमी की तरह अपने गुणों का बखान करते फिरोगे ,तब गुणों का महत्व ही समाप्त हो जायेगा। 
पुराने ग्रंथो के पन्ने उलटने पर यह मालूम होता है कि आदर ,मान और बड़पन पाने का कारण विनय ही है। महाराज रघु संसार को जीतकर भी विनयशील ही बने रहे। भगवान रामचंद्र जी ने विनय की महिमा दिखाकर महाक्रोधी पशुराम को पानी -पानी कर दिया। लंका जलाने ,समुंद्र लांघने और सीता की सुधि लाने के कारण हनुमान जी की बड़ी प्रसंसा होने लगी। उन्होंने सहज ,शील और विनय के साथ शीश झुकाकर अपनी बड़ाई को आश्रीवाद के समान माथे पर चढ़ा लिया -कह दिया कि यह तो रामचंद्र जी के प्रताप की बलिहारी है। 












Comments

Popular posts from this blog

Maa baap ki seva hi asli dhrm hai

keya aap ko lgta hai ki sbka malik ek hai

Raja vikramaditya ki khani