aane vale smy me hmare dish me pani ki kmi hogi
जल्द ही हमारे देश में पानी की समस्या होने वाली है,जो की सबसे बड़ी समस्या होगी।
हम लोग आने वाली सालो में भारत के सामने आने वाली तकलीफो पर चर्चा कर रहे थे। काफी लंबी बहस के बाद भी हमारे बीच सहमति नहीं हो पाई। महाराष्ट्र जैसे संपन्न राज्य के लातूर में जो हुआ उसने उस अमेरिकी की चेतावनी दोहरा दी है। घडो और बर्तनो को लाइन में रखवाने के लिए धारा 144 लगानी पड़ी और इसने मुझे उस चेतावनी की याद दिला दी। लेकिन उस अमेरिकी ने मुझे एक आशावादी पक्ष भी दिखाया था कि यमुना ,गंगा योजना में पानी का समंदर है जो निकाले जाने का इंतजार कर रहा है। मुझे पता नहीं कि यह कितना सच है।
अगर ऐसा होता तो सरकार ने इस जमा पानी को नापने के लिए वैज्ञानिक अध्ययन कराया होता। मैंने ऐसी किसी योजना के बारे में तभी तक नहीं सुना है। शायद इस साल महाराष्ट्र सबसे पीड़ित राज्य है। पिछले साल कुछ दू सरे राज्यों की हालत ऐसी ही थी। ज्यादातर राज्य या जहां तक इसका सवाल है ,देश की अर्थव्यवस्था मानसून पर काफी निर्भर है।
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हम आकाश में काले बादल ढूंढ़ते रहना पड़ेगा। पानी हमारे लिए बहुत मायने रखता है। अनाज उगाने और पीने के लिए। पंजाब ,हिमाचल प्रदेश में भाखड़ा बांध ने हरियाणा समेत पुरे क्षेत्र को भारत के अनाज भंडार के रूप में बदल दिया है। भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भाखड़ा बांध को मंदिर कहते थे। उन्होंने उस समय कहा था कि भारत के परंपरागत मंदिर रहेंगे ,लेकिन आर्थिक विकास के लिए हमे नए मंदिरो ,जिसका अर्थ था बांध और ओद्योगिक परियोजनाएँ , का निर्माण करना होगा। यह भाखड़ा बांध पूरे देश को खिला सकता है। लेकिन बड़े बांध का बनाना जरूरी नहीं है क्योकि ये घर -द्वार और चूल्हा ,चक्की से उजाड़ दिए लोगो को बसाने की समस्या पैदा करते है। छोटे और अलग -अलग जगहों पर बने बांध उतने ही काम के हो सकते है,भले ही उनसे बेहतर न हो। नर्मदा बांध की उचाई को लेकर मेधा पाटकर के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन का यही निष्कर्ष था।
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वह सफल नहीं हो पाई ,हालाँकि तत्कालीन सरकार की ओर से तैयार कराई हुई जल संसाधन मंत्री सैफुद्दीन सोज की रिपोर्ट ने कहा था कि बांध से होने वाला फायदा सालो से रहने वाले लोगो को उजाड़ने से होने वाले घाटे के मुकाबले बहुत कम है। लेकिन कई साल बाद बांध बनाया जाने लगा ,जब गुजरात ने यह वायदा किया कि उजाड़े गए किसानो और अन्य लोगो की भरपाई के लिए वह जमीन देगी। यह अलग बात है कि राज्य सरकार अपना वायदा पूरा नहीं कर पाई क्योकि वह उतनी जमीन ढूंढ ही नहीं पाई। भारत में सात बड़ी नदियाँ गंगा ,ब्रह्मपुत्र ,सिंधु ,नर्मदा ,कृष्णा ,गोदावरी ,कावेरी और इन नदियों में जल पहुंचाने वाली अनेक छोटी नदियाँ है। इन नदियों के इस्तेमाल ही नहीं ,बल्कि उनसे बिजली पैदा करने के लिए नई दिल्ली ने केंद्रीय जल और बिजली आयोग बना रखा है।
इसने बहुत हद तक काम भी किया है। लेकिन भारत के कई हिस्सों में इससे ऐसे गंभीर विवाद पैदा हुए हैं जो दशकों से सुलझाए नहीं जा सके है। इस स्थिति ने एक राज्य से दूसरे राज्य के लोगो के बीच दूरी भी बना दी है। उदाहरण के लिए ,कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी जल के बंटवारे का मामला सालो से लटका हुआ है। तमिलनाडु को कुछ क्यूसेक जल की मात्रा मापने का पैमाना पानी देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद ऐसी हालत है। पास में ही ,पंजाब ने राजस्थान को पानी देने से मना कर दिया है। यह सिंधु जल समझौते के समय अपनाई गई नई दिल्ली की द्रष्टि के खिलाफ है। उस समय ,परियोजना को धन दे रहे विश्व बैंक के सामने भारत ने दलील दी थी कि राजस्थान के बलुआही इलाको को सींचने के लिए उसे बहुत ज्यादा पानी चाहिए।
यह हास्यास्पद है कि नई दिल्ली की ओर से राजस्थान के पक्ष में फैसला होने के बाद भी पंजाब ने अब उसे पानी देने से मना कर दिया है। विश्व बैंक ने उस समय भारत की दलील स्वीकार कर ली थी कि भारत पाकिस्तान को पानी नहीं दे सकता क्योकि उसे राजस्थान के बालू के टीलो वाली जमीन वापस पाने के लिए पानी की जरूरत है। हमारे पास इसका क्या जवाब है जब राजस्थान को पानी देने के अपने वायदे से पंजाब मुकर जाता है ?
यह माना जाता है कि राजस्थान पहुंचने वाले पानी से वहां कई अनाज पैदा किये जा सकते है ,लेकिन पंजाब और हरियाणा के कुछ इलाको को जो पहले सिचिंत है ,को पानी नहीं मिलेगा। यही विसंगतिया अंतराजीय जल -विवाद के लिए जिम्मेदार है। आजादी के 70 साल बाद भी इन विवादों को सुलझाया नहीं जा सका।
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