Chand ka kurta .
यह एक प्रसिद्ध कविता है। यहाँ चाँद अपनी माँ से अपने लिए एक कुरता सिलवाने की विनती करता है।
हठ कर बैठा चाँद एक दिन ,
माता से यह बोला ,
"सिलवा दो माँ ,मुझे उन का ,
मोटा एक झिंगोला ।
सन -सन चलती हवा रात भर ,
जाड़े से मरता हूँ ,
ठिठुर -ठिठुर कर किसी तरह
यात्रा पूरी करता हूँ।
आसमान का सफर और यह ,
मौसम है जाड़े का ,
न हो अगर तो ला दो कुरता
ही कोई भाड़े का। "
बच्चे की सुन बात कहा
माता ने ,"अरे सलोने !
कुशल करे भगवान ,लगे मत ,
तुझको जादू -टोन।
जाड़े की तो बात ठीक है ,
पर मै तो डरती हूँ ,
एक नाप में कभी नहीं ,
तुझको देखा करती हूँ।
कभी एक अंगुल भर चौड़ा ,
कभी एक फुट मोटा ,
बड़ा किसी दिन हो जाता है ,
और किसी दिन छोटा।
घटता -बढ़ता रोज ,किसी दिन
ऐसा भी करता है ,
अब तू ही यह बता ,
नाप तेरी किस रोज लिवाय ,
सी दे एक झिंगोला जो ,
हर रोज बदन में आए ?"
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