Desh -prem

देशभक्ति एक उच्चकोटि की भावना है। जिस देश के लोगो में यह भावना होती है वह सदा आगे -ही -आगे बढ़ता है। 

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जापान एक छोटा -सा देश है ,किंतु उन्नति और खुशहाली में बड़े -बड़े देश भी इससे कोसो दूर है। इसे 'एशिया महाद्वीप की शान 'कहे तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। जापान को 'उगते हुए सूर्य का देश 'भी कहा जाता है। सुबह के सूर्य की प्रथम किरणे जापान को ही स्पर्श करती है। 
यहाँ के लोग ईमानदार और मेहनती होते है। इनके रोम -रोम में देशभक्ति भरी होती है। ये दयालु और सहनशील होते है। 
जापान में अक्सर भूंकप आते रहते है। इसलिए वहाँ ज्यादातर घर लकड़ी और कार्ड -बोर्ड के बनाए जाते है। जापानी लोग अपने घरो को अंदर और बाहर से खूब सजाकर रखते है। 
वे घरो की साफ -सफाई पर भी बहुत ध्यान देते है। जापानी लोग देश की संपत्ति की सुरक्षा और उसकी देखभाल करना अपना प्रथम कर्तव्य मानते है। वे अपने थैले में सुई और धागा अवश्य रखते है। यदि यात्रा करते समय उन्हें बस की सीट थोड़ी -सी  भी फ़टी हुई दिख  जाए तो वे तुरंत सुई धागा निकालकर उसे ठीक कर देते है। शायद इसीलिए जापान की गिनती विकसित देशो में की जाती है। कुछ भारतीय छात्र भर्मण के लिए जापान गए हुए थे। उन्होंने जापान के अनेक शहरों का भर्मण किया। अंत में छात्र भारत लौटने के लिए जापान की राजधानी टोकियो पहुँचे। दिल्ली के लिए उनकी उड़ान सांय आठ बजे की थी। छात्रों ने सोचा क्यों न आज फिर टोकियो में कुछ समय घूमा जाए। गाइड ने उन्हें बताया कि आजकल टोकियो में एक पुस्तक मेला चल रहा है। सभी छात्र मेले में पहुँच गए। 
                    लड़को ने अपनी -अपनी पसंद की पुस्तके खरीदी। एक छात्र को एक पुस्तक पंसद आई जो कुछ  पुरानी -सी लग रही थी। उसने सोचा कि इस पुस्तक को खरीदने पर कुछ छूट मिल जायगी। वह पुस्तक लेकर पुस्तक -विक्रेता के पास गया। पुस्तक -विक्रेता ने छात्र से पूछा कि आप कहाँ से आए है ? लड़के ने कहा कि वह भारत से आया है। और इस पुस्तक को खरीदना चाहता है। पुस्तक विक्रेता ने कहा -यह किताब अच्छी हालत में नहीं है ; मै इसे आपको बेचना तो दूर मुफ्त में भी नहीं दे सकता। हाँ ,यदि आपके पास थोड़ा समय हो तो मै इसकी दूसरी प्रति आपके लिए जरूर मँगवा सकता हूँ। "छात्र ने सोचा शायद पुस्तक -विक्रेता ज्यादा पैसे लेना चाहता है। अतः उसने पुस्तक लेने में अनिच्छा प्रकट की। पुस्तक -विक्रेता बोला -"आप घबराइए मत। मै यह

पुस्तक आपको उपहारस्वरूप दूँगा। "यह कहते ही उसने अपने नौकर को पुस्तक लाने भेज दिया। दस मिनट 
बाद नौकर नई पुस्तक लेकर आ गया। 
                           पुस्तक -विक्रेता ने अच्छी तरह से जाँच -परखकर पुस्तक छात्र को दे दी। छात्र यह सब देखकर हैरान था। उसने पुस्तक -विक्रेता से कहा -"भाई तुम्हे यह पुस्तक मुझे उपहार में ही देनी थी तो पहले वाली पुस्तक क्यों नहीं दे दी ? वह भी तो अच्छी हालत में थी। इस पुस्तक को लाने के लिए इतना कष्ट और अपना कीमती समय क्यों लगाया ?"
जापानी पुस्तक -विक्रेता ने कहा -"भाई तुम विदेशी हो ;जब तुम अपने देश जाओगे तो लोग तुमसे पूछेंगे कि जापान से क्या लाए हो ? तुम उन्हें यह पुरानी पुस्तक दिखाते। इसे देखकर लोग सोचते कि शायद जापान में ऐसी ही पुरानी पुस्तक मिलती होंगी। आपके भारत में लोग मुझे नहीं जानते है ,पर मेरे देश को जरूर जानते है। मेरे थोड़े से लालच से मेरे देश की बदनामी हो ,यह मै कभी सहन नहीं कर सकता। "पुस्तक -विक्रेता के देश -प्रेम देखकर छात्र आश्चर्यचकित रह गया। 

शिक्षा >> अपने देश के प्रति निष्ठा रखना हमारा नैतिक धर्म है। यही हमने इस कहानी के माध्यम से आपको बताने के चेस्टा की है। 

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