Ese bhi bhgt hai is dhrti pr .

हमारे देश में अनेक ऐसे भगत भी है जो सब कुछ निछावर कर सकते है भगवान के नाम पर ,ऐसे ही एक भगत की घटना है इस कहानी में। 

एक नर्सिंग भगत थे।  जो श्री कृष्ण के बहुत बड़े भगत थे। वे कभी बहुत बड़े राजा थे ,जो की उन्होंने अपने भगवान श्री कृष्ण के नाम पर सब कुछ त्याग दिया। उनको खाने के लिए भी खाना नहीं था। वे सब कुछ त्यागकर जंगल में एक झोपडी में रहते थे। उनकी एक लड़की थी। जिसका नाम हरनदी था। कहते है की जब मनुष्य के पास धन नहीं होता तो लोग उससे बचकर निकलते है की कही आप से वो पैसे न मांग ले। नर्सिंग के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। 
                                नर्सिंग की बेटी ने भी अपने पिता से मुँह मोड़ लिया था। अब नर्सिंग की बेटी की पुत्री की सादी आ गयी। अब हरनदी और ज्यादा परेशान हो गयी क्योकि उसे पता था की तेरे पिता के पास धन तो है नहीं। वह भात कैसे देगा। हरनदी के यह से एक नाई नर्सिंग भगत के गांव पहुंचा। नाई जिससे भी नर्सिंग भगत के घर का पता पूछता वही हंसी उडाता और बोलता भाई वह तो कहीं भांग पिए पड़ा होगा। आखिर में नाई को उसकी
टूटी पड़ी झोपडी मिल गयी। नाई ने देखा की नर्सिंग भगत जी एक टूटी पड़ी चारपाई पर लेटा हुआ है। नर्सिंग भगत ने हाथ जोड़कर राम राम करी और नाई को बिठाया। और नाई से बोला में जगंल से कुछ बथवा ले आउ। आपके खाने के लिए जैसे ही नर्सिंग भगत जी जगंल की तरफ गए। वैसे ही श्री कृष्ण भगवान नर्सिंग भगत जी के वेस में नाई के पास आए और उनको चाँदी की थाली में खाना परोसा। नाई की आँखे खुली की खुली रह गयी। 
                                      अब श्री कृष्ण भगवान ने उस नाई को उसकी बिदाई दी और जिस चांदी के बर्तनो में नाई ने खाना व पीना किया था। उसे भी साथ ले जाने को कहा श्री कृष्ण भगवान ने। नाई खुशी -खुशी वहा से चला गया। इतने में नर्सिंग भगत जी इधर -उधर से बथवा लाये और उन्होंने  देखा की नाई वहाँ नहीं था। नर्सिंग भगत जी ने सोचा शायद नाई को मेरी आव -त्वजा अच्छी नहीं लगी इसलिए वह यहा से चला गया। 
                        अब नर्सिंग भगत को नाई द्वारा लायी चिठ्ठी को लेकर चितंत था। फिर उसने अपने दोनों हाथ जोड़कर ऊपर अपने भगवान श्री कृष्ण को याद किया और सब कुछ भगवान श्री कृष्ण को सोप दिया। फिर वह दिन भी आ गया जब नर्सिंग भगत जी को भात देना था। उसके पास दो बूढ़े बैल थे एक टूटी -सी बुगी जो की बैलो ले माध्यम से चलाई जाती है। नर्सिंग भगत जी ने अपने साथ के मोढ़ाओं को साथ लेकर उस टूटी -सी बूगी में ले कर चल दिया। उस बैल गाड़ी में वे चार -पांच थे। अब आगे चलकर उनमे से एक बैल धरती पर लेट गया। नर्सिंग जी हाथ फेरकर उस बूढ़े बेल से बोले की मुझे जल्दी पहुंचना है ,हरनदी मेरी प्रतीक्षा कर रही होगी। बैल खड़े होकर थोड़ी दूर ही चले थे की गाड़ी का पहिया खराब हो गया। 
                नर्सिंग भगत जी अब श्री कृष्ण को याद कर रहे थे। इतने में वहां एक गंदे कपड़ो में एक भिखारी दिखाई दिया। वह बोला अगर मै तुम्हारी गाड़ी ठीक कर दू तो मुझे भी साथ ले चलोगे ,नर्सिंग भगत जी बोले चलो कोई बात नहीं आप भी हमारे साथ चलना लेकिन यह गाड़ी ठीक कर दो। उस गंदे भिखारी के वेस में वे श्री कृष्ण भगवान थे। उन्होंने अपनी शक्ति से वह गाड़ी  ठीक कर दी। श्री कृष्ण भगवान के बैठते ही गाड़ी में अब तो बैलो में भी जान पड़ गयी थी। वो तो बस थोड़ी देर में ही पहुंचा दिए। नर्सिंग भगत जी को महसूस हो गया था की यही श्री कृष्ण भगवान है मेरे साथ। श्री कृष्ण भगवान ने नर्सिंग भगत जी से कहा था अगर कोई मेरे बारे में पूछे तो अपना नौकर बताना ये बात किसी को नहीं बताना की ये श्री कृष्ण भगवान है। 
            जब हरनदी भात लेने के लिए  खड़ी हुई तो श्री कृष्ण भगवान ने पुरे गांव में सोना बरसाया था। आज भी कोई कितना भी बड़ा हो धनी  में लेकिन ऐसी सोने की बारिश कोई नहीं कर सकता जितना की नर्सिंग भगत जी ने की थी। तब से एक कहावत चली आ रही है कि धोबी घर का रहा न घाट का यानि इसका मतलब है की जब उस गांव में सोने की बारिश हो रही थी तो धोबी ने सोचा की पहले घाट का सोना ले आता हूँ बाद में घर का उठा  लूंगा अब धोबी घाट पर गया। घाट पर कुछ भी नहीं था वापिस घर आया तो उसका सारा सोना पड़ोसी ले गए। 

 सच्ची श्रद्या से आज भी कोई भगती करता है तो भगवान श्री कृष्ण उसके साथ होते है। 

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