Ishvr bhgt

ईश्वर भगत रैदास ने अपने सच्चे मन से भगती की थी। ईश्वर की भक्ति के लिए ऊपरी दिखावा जरूरी नहीं है। इस कहानी में हमने यही बताने की कोशिश की है। 

बहुत समय पहले रैदास नाम के एक भगत हुए थे। रैदास जाति से मोची थे तथा जूते बनाकर अपने परिवार का पालन -पोषण किया करते थे। रैदास की ईश्वर में असीम -श्रद्धा थी। वे अधिकतर साधु -संतो की सेवा करते और उनके सतसंग में रहते थे। 
           एक दिन की बात है कि एक भगत ने ,जो रैदास के सामने से होकर प्रतिदिन गंगा -नहाने के लिए जाया करता था ,रैदास से कहा -"रैदास ! चलो गंगा -नहाने के लिए चले। '' रैदास ने भगत की तरफ देखा और कहा -मेरी तरफ से पैसा लो और इसका प्रसाद गंगाजी में चढ़ा देना ,लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि गंगा मैया हाथ फैलाकर ले तो देना ,नहीं तो मत देना। 
                भगत ने कहा --कही ऐसा भी होता है ,जैसा तुम कह रहे हो। रैदास ने पुनः कहा --जैसा मैंने कहा ,वैसा ही करना। भगत ने जाकर गंगा में नहाया ,अपना फूल -प्रसाद चढ़ाया और गंगाजी में घुसकर कहा --गंगा मैया ,यह प्रसाद रैदास भगत का है ,अपना हाथ फैलाकर ग्रहण करो। उसी समय आकशवाणी हुई --रैदास भगत का प्रसाद स्वीकार है। भगत ने फिर कहा --गंगा मैया ,यह प्रसाद रैदास भगत का है ,इसे हाथ फैलाकर स्वीकार करो। पुनः वही आकाशवाणी हुई। भगत ने तीसरी बार फिर वही शब्द दोहराए। इस बार गंगा ने स्वयं हाथ फैलाकर रैदास का प्रसाद ग्रहण कर लिया तथा सुनहरा  कंगन भगत को दे दिया और कहा --जाओ ,इस कंगन को मेरी तरफ से रैदास को दे देना। 
                       अब भगत को विश्वास हों गया कि रैदास ईश्वर का सच्चा भगत है। उसने कंगन लाकर रैदास को दिया और कहा कि गंगा मैया ने तुम्हारे लिए दिया है। रैदास शाम को घर गए और कंगन एक छोटी -सी अलमारी में रख दिया। वह वहाँ बहुत दिनों तक रखा रहा। 
                                          एक दिन रैदास की पत्नी ने सोचा कि यह कंगन काफी दिनों से यहाँ रखा है। अकेला कंगन हमारे किस काम का है ,इसे सेठ के यहाँ ही दे आउ। रैदास की पत्नी वह कंगन सेठ की पत्नी को दे आई। सेठानी के पास उसकी पुत्री भी खड़ी थी। वह कंगन उसने अपनी माँ से लेकर अपने हाथ में पहन लिया। वह उसके हाथ में बड़ा अच्छा लग रहा था। उसने अपनी माँ से दूसरा कंगन भी लाने की जिद की। सेठानी ने रैदास की पत्नी से दूसरा कंगन भी लाकर देने को कहा ,लेकिन वहाँ दूसरा कंगन तो था ही नहीं। यह बात सेठ तक पहुंच गई। अगले दिन सेठ स्वयं ही रैदास के पास आए। उस समय रैदास जूते बना रहे थे। रैदास ने नजर ऊपर उठाई 
,देखा तो सेठजी खड़े थे। सेठजी ने कहा --रैदास ,जहाँ से यह कंगन लाए हो ,वही से दूसरा भी लाकर दो। 
                                                               रैदास ने यह सुनकर मन में गंगा मैया का स्मरण कर अपनी कठौती  हाथ डाला। रैदास तो ईश्वर के परमभगत थे। भगवान अपने भगतो के विस्वास की सदा रक्षा करते है। रैदास ने कठौती से वैसा ही  कंगन निकालकर सेठजी  को दे दिया। सेठजी यह देखकर आश्चर्यचकित रह गए और जिज्ञासा से रैदास की ओर देखने लगे ,तब रैदास ने मुस्कुराकर सेठजी से कहा --"मन चंगा तो कठौती में गंगा। "

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