Manbhavn savn
प्रस्तुत कविता में कवि ने सावन के बरसते बादल का मनोरम चित्र खींचा है। कविता के अंत में कवि ने जन -धन के जीवन में सावन का उल्लास भरने की कामना की है।
छम -छम -छम गिरती बुँदे तरुओं से छन के।
चम -चम दिन के तम में सपने जगते मन के।
पंखो से रे ,फैले -फैले ताड़ो के दल ,
लम्बी -लम्बी अंगुलियां है ,चौड़े करतल।
तड़ -तड़ पड़ती धार वारि की उन पर चंचल ,
टप -टप झरती कर मुख से जल बुँदे झलमल।
नाच रहे पागल हो ताली दे -दे चल -दल,
झूम -झूम सिर नीम हिलाती सुख से विह्ळ !
हरसिंगार झरते बेला -कलि बढती प्रतिपल ,
हँसमुख हरियाली में खगकुल गाते मंगल।
दादुर टर -टर करते झिल्ली बजती झन -झन ,
'म्याव ' 'म्याव 'रे मोर , 'पीउ ' 'पीउ 'चातक के गण।
उड़ते सोनबालक ,आद्र -सुख से कर क्रन्दन ,
घुमड़ घुमड़ घिर मेघ गगन में भरते गर्जन।
रिमझीम -रिमझीम क्या कुछ कहते बूंदो के स्वर ,
रोम सिहर उठते छूते वे भीतर अन्तर।
धाराओं पर धाराए झरती धरती पर
रज के कण -कण में तृण -तृण को पुलकावलि भर।
पकड़ वारि की धार झूलता है मेरा मन ,
आओ रे सब मुझे घेर कर गाओ सावन।
इंद्रधनुष के झूले में झूले मिल सब जन ,
फिर -फिर आये जीवन में सावन मनभावन।
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