Purskar

परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हो ,किसी भी स्तितित में हमे सच्चाई और ईमानदार का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। इस कहानी में यही एक किस्सा लिख रहे है। 

( दृश्य --घर के एक कमरे में चारपाई के ऊपर राम की बीमार माँ लेटी हुई है। )
माँ >बेटा राम !तुम्हारे स्कूल जाने का समय हो गया है। अब तुम जाने की तैयारी करो। तुम्हारी परीक्षाए भी पास आ गयी है। 
राम >नहीं माँ ,मै आपको इस दशा में छोड़कर नहीं जाऊंगा। मुझे आपकी दवा भी तो लानी है। 
माँ >दवा ! कहाँ से लाएगा ? दवा क्या बिना पैसों के आ जाती है ?थोड़ा बुखार है, उतर जाएगा। तू अपनी पढ़ाई मत छोड़ ,पर तूने तो कल कुछ नहीं खाया। भूखे पेट क्या पढ़ाई होगी ?जा महेश की दुकान से बिस्कुट ले आ। 
राम >>मै नहीं जाऊंगा महेश के पास। वह पिछले उधार के पैसे मांगेगा। आप मेरी चिंता मत करो। मै स्कूल में कुछ न कुछ खा लूंगा। 
माँ >>स्कूल में कहाँ से खा लेगा ?
राम >>मेरे कई मित्र है। वे मुझे बिना खिलाए नहीं मानते है। पर आपकी दवा. ......... 
माँ >>मेरी दवा की चिंता छोड़। कल तक मै ठीक हो जाउंगी। काम पर जाना शुरू कर दूंगी ,फिर सब ठीक हो जाएगा। 
              ( बाहर से आवाज आती है -"राम क्या स्कूल नहीं चलना ?)
माँ >>देख गीता तैयार होकर आ गयी ,झटपट तैयार होकर स्कूल जा। 
              ( पीठ पर बस्ता लटकाए गीता अंदर आती है। )
गीता >>चाची जी नमस्ते। 
माँ >>आओ बेटी। 
गीता >>अरे राम ,तुम अभी तक तैयार नहीं हुए ?
माँ >>मै तो कब से कह रही हूँ पर ये. .... ... 
राम >>माँ आपकी दवा...... 
गीता >>अरे हां ,मै तो भूल गई। चाची जी पापा जी ने आपके लिए दवा भिजवाई है। तीन -तीन घंटे में तीन खुराकें लेनी है। और हाँ ,मम्मी ने यह नाश्ता भिजवाया है। पहले नाश्ता लेना उसके बाद दवा। खाली  पेट दवा नुकसान करती है न। 
माँ >> नहीं ,नहीं बेटी ,इन सबकी क्या जरूरत है। हम तो पहले ही आप लोगो के अहसान में  दबे हुए है। 
गीता >>यह सब आप मम्मी से ही कहना। वह भी काम निपटाकर थोड़ी  देर में आएगी। राम तुम खड़े -खड़े क्या देख रहे हो ,स्कूल नहीं चलना ?
                ( राम जल्दी -जल्दी स्कूल की तैयारी करता है। )
                ( राम और गीता स्कूल से घर को आ रहे है। )
गीता >>राम क्या तुम गणित का काम पूरा करा दोगे ?गणित से मुझे डर लगता है। 
राम >> ( हसते हुए ) डर लगता है ?तुम मेरे साथ रोज एक घंटे बैठकर गणित  किया  करो। डर दूर भाग जायगा।  गीता >>राम ,राम देखो ,वह सड़क पर क्या पड़ा है ? पर्स जैसा लगता है। 
राम >>( पास पहुंचकर ) हाँ ,यह तो पर्स है। किसी की जेब से गिर गया है। 
गीता >>देखो इसमें क्या है ?
राम >>( खोलकर देखता है ) इसमें तो काफी रूपये है और चाबियाँ भी है। 
गीता >>अरे वाह ! इतने सारे पैसे !बड़े मजे आयंगे। किसी को बताना नहीं। तुम बैट और बॉल लेना चाहते थे न ? अब बढ़िया वाले लेना। 
          सोनू और शालू भी इतराना भूल जायगे ,अपनी गेंद पर और अपनी माँ को अच्छी दवा दिलाना। मुझे ,तो बस एक चॉकलेट का पैकेट दिला देना। पर्स को बस्ते में छिपा लो। 
राम >> गीता तुमको याद है ,एक बार तुम्हारे पांच का नोट गिर गया था। तुमको कितना दुःख हुआ था। 
गीता >>पांच रुपए बहुत होते है। मेरे मामाजी मुझे दे गए थे। मुझे सचमुच बड़ा दुःख हुआ था। 
राम >>सोचो जिसके इतने सारे पैसे गिरे है ,वह कितना दुखी होगा ?
गीता >> क्या ? हां ,बात तो तुम्हारी ठीक है ,पर हम उसे कहाँ डुंडगे ?
राम >> एक काम करते है। कुछ देर यहाँ खड़े होकर प्रतीक्षा करते है। हो सकता है वह आदमी पर्स खोजता हुआ इधर आये। 
गीता >>ठीक है ,पर हमको घर लौटने में देर हो जायगी। 
राम >>हां देर तो होगी ,लेकिन उसे उसका पर्स मिल गया तो उसे कितनी प्रसन्नता होगी। 
गीता >>राम ,वह देखो ,रिक्शे पर बैठा वह आदमी सड़क पर इधर उधर देखता जा रहा है। 
राम >>हो सकता है पर्स इसी का हो। पहले ठीक -ठीक पता करेंगे। 
               ( रिक्शे से उतरकर एक व्यक्ति बच्चो के पास आता है। बढ़िया कपड़े पहने है। हाथ में छोटा -सा सूटकेस है। )
व्यक्ति >>बच्चो ! तुम यहाँ कितनी देर से खड़े हो ?
राम >>जी ,लगभग पंद्रह मिनट से। क्या बात है ,आप कुछ चिंतित लग रहे है ?
व्यक्ति >>बेटा ,मेरा पर्स यही -कही गिर गया है। उसमे पैसो के अलावा जरूरी कागज और घर की चाबियां भी है। क्या तुमने किसी को पर्स उठाते हुए देखा है। 
गीता >>जी हाँ ,एक लड़के को पर्स उठाते हुए देखा था। कैसा पर्स था आपका ?
व्यक्ति >>नीले रंग का पर्स था। उसमे मेरे नाम की चिट भी लगी है ,'शिव शर्मा '
                ( गीता राम की ओर देखती है। राम बस्ते से पर्स निकालता है। )
राम >>देखिए ,कही आपका पर्स यह तो नहीं है। 
व्यक्ति >>हाँ ,हाँ यही है बेटे। तुम्हारा बहुत -बहुत धन्यवाद। तुमने मुझे भारी परेशानी से बचा लिया। 
राम >>आप पहले पर्स की जाँच कर ले। सभी वस्तुएँ है कि नहीं। 
व्यक्ति >>( पर्स खोलकर देखते हुए )हाँ ,सब ठीक है। तुम्हारा क्या नाम है बेटे ?
राम >>  जी ,राम। 
व्यक्ति >>तुम सचमुच राम हो। लो बेटे ये रखो। ( कुछ रुपए देना चाहते है। )
राम >>नहीं ,नहीं मै कुछ नहीं लूंगा। मै अब जाऊ ? मेरी माँ बीमार है। मुझे उनकी दवा लानी है। 
व्यक्ति >>माँ बीमार है ? तुम्हारे पिता क्या करते है ?
गीता >>इसके पिता नहीं है। 
व्यक्ति >>ओह !...... राम हम तुम्हारी माँ से मिलकर ही जायगे। चलो आओ रिक्शे में बैठो। 
      ( राम और गीता के साथ वह व्यक्ति राम के कमरे में प्रवेश करता है। )
व्यक्ति >>( राम की माँ से ) बहन जी नमस्कार !
माँ >>नमस्कार जी ! ( माँ आश्चर्य से देखती है। )
व्यक्ति >>बहन जी आपका बेटा बहुत होनहार है। आपने इसे बहुत अच्छी शिक्षा दी है। इसने मुझे मेरा खोया हुआ पर्स लौटकर मुझे भारी परेशानी और नुकसान से बचाया है। मै ह्रदय से आश्रीवाद देता हूँ कि यह पढ़ -लिखकर एक बड़ा आदमी बने। मेरी यह तुच्छ भेट स्वीकार कीजिये। ( माँ को रूपये देता है। )
माँ >>यह क्या है ? नहीं ,नहीं यह तो इसका कर्तव्य था। ये पैसे आप रखिए। 
व्यक्ति >>ऐसा मत कहिए। जब मैंने आपको बहन माना है तो राम मेरा भांजा हुआ। अब बहन और भांजे के प्रति मुझे भी तो अपना कर्तव्य निभाना है। आप यह रखिए। मै फिर आऊंगा। बेटा ,राम यह तुम्हारी ईमानदारी और कर्तव्य -पालन का पुरस्कार है। 




















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