School mujhe acha lga
प्रस्तुत कहानी में लेखक ने वर्तमान स्कूलों की शिक्षा -पद्धति पर करारी चोट करते हुए उसे बच्चो के लिए व्यावहारिक बनाने की बात कही है।
जब तोत्तो -चान ने नये स्कूल का गेट देखा तो वह ठिठक गयी। अब तक जिस स्कूल में वह जाती रही थी उसका गेट सीमेंट के दो खम्भों का बना था और गेट पर बड़े -बड़े अक्षरों में स्कूल का नाम लिखा था ,पर इस स्कूल का गेट तो पेड़ के दो तनो का था। उन पर टहनियाँ और पत्ते भी थे।
'अरे ,यह गेट तो बढ़ रहा है ',तोत्तो -चान ने कहा। 'यह बढ़ता जायेगा ,और एक दिन शायद टेलीफोन के खम्भे से भी ऊंचा हो जायेगा। '
गेट के ये दो खम्भे असल में पेड़ ही थे ,जिनकी जड़े मौजूद थी। कुछ और पास पहुंचने पर तोत्तो -चान ने अपनी गर्दन टेढ़ी कर स्कूल का नाम पढ़ना चाहा। टहनी पर टँगी नाम की तख्ती भी हवा से टेढ़ी हो गयी थी।
'तो -मो -ए गा -कु -एन। '
तोत्तो -चान माँ से पूछना चाहती थी कि तोमोए का मतलब क्या होता है ,तभी अचानक उसे एक चीज दिखी और उसे लगा जैसे वह सपना देख रही हो। वह बैठ गयी ताकि झाड़ियों के बीच से अच्छी तरह देख पाये। उसे अपनी आँखो पर विश्वास नहीं हो रहा था।
'माँ ,क्या वह सचमुच की रेलगाड़ी है ? देखो ,वहाँ स्कूल के मैदान में। '
स्कूल के कमरों की जगह रेलगाड़ी के छह बेकार डिब्बे काम में लाये जाते थे। तोत्तो -चान को लगा ,ऐसा तो सपनो में ही होता होगा। रेलगाड़ी में स्कूल !
डिब्बों की खिड़कियाँ सूरज की प्रातः कालीन धूप में चमक रही थी। लेकिन झाड़ियों के बीच से झांकती गुलाबी गालो वाली एक नन्ही लड़की की आँखे और भी अधिक चमक रही थी। क्षण -भर बाद ही तोत्तो -चान खुशी से चिल्लाई और रेलगाड़ी के डिब्बे की और भागी भागते -भागते मुड़कर ही माँ से कहा ,'आओ ,जल्दी करो। बिना हिले -डुले खड़ी इस गाड़ी में हम झट से चढ़ जाते है। '
'तुम तभी अन्दर नहीं जा सकती ',माँ ने उसे रोकते हुए कहा। 'ये ककक्षाए है और तुम तो अभी स्कूल में दाखिल तक नहीं हुई हो। अगर सचमुच इस ट्रेन में चढ़ना चाहती हो तो तुम्हे हेडमास्टर जी के सामने कायदे से पेश आना होगा। अब हम उनसे मिलने जाएगे। अगर सब कुछ ठीक रहा तो तुम स्कूल में आ सकोगी। समझी ?'
तोत्तो -चान को तुरंत 'ट्रेन ' में न चढ़ पाने का दुःख तो हुआ ,पर उसे लगा कि जैसा माँ कहती है ,वैसा करना ही शायद अच्छा हो।
'ठीक है ',उसने कहा। साथ ही जोड़ा ,'यह स्कूल मुझे बहुत अच्छा लगा है। ' माँ ने कहना तो चाहा कि प्रशन यह नहीं है कि तुम्हे स्कूल अच्छा लगता है या नहीं ,बल्कि यह है कि हेडमास्टर जी को तुम अच्छी लगती हो या नहीं ,पर उसने कुछ कहा नहीं। माँ ने उसका हाथ थाम लिया और वे हेडमास्टर जी के दफ्तर की ओर बढ़ने लगी।
हेडमास्टर जी का दफ्तर रेलगाड़ी के डिब्बे में नहीं था। वह दाहिने हाथ की ओर एक मंजिले भवन में था। वहाँ पहुंचने के लिए सात अर्थ -गोलाकार पथर की सीढिया चढ़नी होती थी।
तोत्तो -चान माँ से अपना हाथ छुड़ा कर सीढिया चढ़ने लगी। अचानक वह रुकी और मुड़ी। 'क्या हुआ ?' माँ ने पूछा ,मन में भय था कि कही तोत्तो -चान ने स्कूल के बारे में अपना विचार न बदल लिया हो।
सबसे ऊपरी सीडी पर खड़ी तोत्तो -चान गंभीरता से फुसफुसाई ,'जिनसे हम मिलने जा रहे है ,वे जरूर स्टेशन मास्टर होंगे। '
Comments