Shap aur mukti

प्रस्तुत कहानी में कहानीकार ने डॉ 0 प्रभात के माध्य्म से अपराधबोद तथा प्रायश्चित -स्वरूप मानव का व्रत लेने का चित्रण किया है। 

एक दिन ऐसा हुआ कि मै बूढ़ी दादी की आँखो का इलाज कराने दिल्ली के एक बड़े प्रसिद्ध नेत्र -चिकित्स्क डॉ 0 प्रभात के कमरे में पहुंचा तो उन्होंने मुस्कराते हुए दादी का स्वागत किया ,''आओ,आओ दादी अम्मा !कहाँ ,किया तकलीफ है ?' दादी ने आवाज से ही डॉक्टर की उम्र का अनुमान लगा कर कहा ,कोई ,' तकलीफ नहीं बेटा। बस बुढ़ापे की मारी हूँ। बुढ़ापे में नजर कमजोर हो ही जाती है। '
      ' पर मै तो आँखो का डॉक्टर हूँ दादी अम्मा !बुढ़ापे का इलाज मेरे पास कहाँ ?' डॉ0 प्रभात ने हँसते हुए कहा। मेरी दादी भी कम विनोदी स्वभाव की नहीं। कहने लगी ,'कोई बात नहीं ,बेटा ! तुम आँखो का ही इलाज कर दो ,बुढ़ापे का इलाज तो भगवान के पास भी नहीं है। 'यह सुनकर डॉ 0 प्रभात हँस पड़े और दादी से बात करते हुए उनकी आँखो की जाँच करने लगे। उन्होंने विस्तार से ,कई उपकरणों और यंत्रो की सहायता से दादी की आँखो की जाँच की बीच -बीच में बातचीत और हंसी -मजाक भी करते जाते थे। 
                   मै चुपचाप बैठा डॉक्टर प्रभात की ओर देख रहा था। पहले तो मुझे उनकी हंसी ही कुछ जानी -पहचानी लगी थी ,फिर ध्यान से देखने पर उनका चेहरा भी कुछ परिचित -सा मालूम हुआ। लेकिन याद नहीं आ रहा था कि मैने इन्हे पहले कहाँ देखा है। आखिर जब उन्होंने दादी की आँखो की पूरी जाँच कर ली ,तो मैंने पूछ ही लिया ,'आप कहाँ के रहने वाले है ,डॉक्टर साहब ?' 'इलाहबाद का हूँ। ' कियो ?
                               'अरे ,हम भी इलाहबाद के ही है। ' दादी मुझसे पहले ही बोल उठी। 'अच्छा ? बड़ी खुशी हुई। ' डॉक्टर प्रभात ने सचमुच खुशी होकर पूछा 'इलाहबाद में कहाँ रहते है आप लोग ?'
                                   दादी ने ज्यों ही हमारे इलाहबाद वाले घर का पता -ठिकाना बताया ,डॉक्टर प्रभात ने मेरी तरफ देखा और अचरज भरी प्रसन्नता से बोले ,"अरे ,तुम बब्बू तो नहीं हो ?" "और तुम मंटू ?" अचानक मेरे मुँह से निकल गया ,"तुम,,,,,,,,आप हमारे बचपन के मित्र मंटू है न ?" ''हाँ भई ,मै मंटू ही हूँ। वाह ,यार तुम खूब मिले !तुम शायद जब दूसरी या तीसरी कक्षा में पढ़ते थे ,तभी अपने परिवार के साथ दिल्ली चले आये थे। है न ?वाह ,मुझे तो स्वपन में भी आशा नहीं थी कि जीवन में फिर कभी तुमसे भेंट होगी। सच ,बड़ी खुशी हुई तुमसे मिलकर। " "मुझे भी। "मैंने अत्यंत प्रसन्न होकर कहा। तभी डॉक्टर प्रभात ने दादी का चेहरा ध्यान से देखा और अचानक उनकी मुस्कान लुप्त हो गयी। चेहरा किसी दुखदाई स्मृति में काला -सा हो गया। दादी की अत्याधिक कमजोर आँखो को डॉक्टर के चेहरे का यह भाव -परिवर्तन नजर नहीं आया। वे प्रसन्न होकर पूछने लगीं, "अच्छा  ,तो तुम दोनों बचपन में साथ -साथ खेले हो ?यह तो बड़ा अच्छा संयोग रहा। तुम तो अपने ही हुए ,डॉक्टर बेटा। हाँ ,तुमने किया नाम बताया अपना ? मंटू ? इलाहबाद में हमारे पड़ोस में एक वकील रहते थे ,उनके लड़के का नाम भी कुछ ऐसा ही था। बड़ा बदमाश लड़का था "डॉक्टर प्रभात ने कोई उत्तर नहीं दिया। वे सहसा बहुत गंभीर हो गए। दादी के लिए दवाई का पर्चा लिखते हुए उन्होंने कहा ,"ये बाते फिर कभी होंगी ,दादी अम्मा !बाहर और भी कई रोगी इंतजार कर रहे है। मै तुम्हारी दवाई लिख रहा हूँ। बाजार से मंगवा लेना और दिन में तीन बार आँखो में डालती रहना ,फिर अगले सप्तहा आज के ही दिन आ जाना। तुम्हारी आँखो का आप्रेशन करना होगा। घबराना मत ,ईश्वर ने चाहा तो तुम्हारी आँखे अच्छी हो जाएँगी। बहार आते ही दादी ने मुझसे पूछा ,"यह उसी वकील का बेटा मंटू था न ?""हाँ ,दादी !बचपन में मेरे साथ पढ़ता था। "बस,तो अब इसके पास दुबारा आने की जरूरत नहीं। मै इस दुष्ट के हाथो अपनी आँखे नहीं फुड़वाउंगी। "
"कैसी बाते करती हो ,दादी ! यह तो बहुत माना हुआ डॉक्टर है और अब तो अपनी जान -पहचान का निकल आया। उसे दुष्ट क्यों कह रही हो ?"
"तू भूल गया इसने वहाँ इलाहबाद में क्या किया था "
"क्या किया था ?"
"अरे ,तुझे याद नहीं ,इसने मुहल्ले की कुतिया के तीन पिल्लो की आँखे आखे के पौधो का दूध डालकर फोड़ दी थी ?तूने ही तो यह बात हम लोगो को बताई थी।  उनमे से एक अँधा पिल्ला तूने जिद करके पाला था ,यह भी तुझे याद नहीं ?"
       मै सचमुच ही सब कुछ भुला हुआ था ,लेकिन दादी के याद दिलाने पर धुंधली -सी स्मृति उभरी और ज्यों ही मैंने दिमाग पर थोड़ा जोर दिया ,बचपन की वह दुखद स्मृति सहसा कल की -सी घटना के रूप में स्पष्ट होकर 
मेरी आँखो के सामने आ गयी। इलाहबाद में हमारे पड़ोसी वकील साहब की कोठी के पीछे एक बहुत बड़ा बाग और घास का मैदान था मै मंटू के साथ अक्सर वहाँ खेला करता था। बाग की मेड के पास आखे के बहुत पौधे उगे हुए थे। एक दिन हम खेल -खेल में आखे के पत्ते तोड़ने लगे। उधर से गुजरते हुए हमारे स्कूल के अध्यापक ने हमे देख लिया। उन्होंने हमे डॉट लगाई और बताया कि आखे के पत्ते कभी नहीं तोड़ने चाहिए ,क्योकि उन्हें तोड़ने से जो गाढ़ा -गाढ़ा सफेद दूध -सा निकलता है ,यदि आँखो में चला जाये आदमी अँधा हो जाता है। यह जानकारी हम लोगो के लिए एकदम नई और विस्मयकारी थी। वास्तव में ऐसा होता है या नहीं यह देखने के लिए मंटू ने एक प्रयोग कर डाला था। ठंड के दिन थे और मुहल्ले में आवारा घूमने वाली एक कुतिया ने वकील साहब की कोठी के पीछे पड़ी सुखी टहनियों के ढेर के निचे तीन पिल्लै दिये थे। पिल्ले बड़े सुंदर थे। मै और मंटू उनसे खेला करते थे। आखे के दूध के भयानक असर की जानकारी मिलने के अगले दिन जब मै स्कूल से आकर खाना खाने के बाद मंटू के साथ खेलने गया तो मैने देखा ,मंटू आखे के पोधो के पास बैठा है और उसके घुटनो में दबा पिल्ला क़े -के कर रहा है। दो पिल्ले पास ही कु -कु करते इधर -उधर भटक रहे थे। नजदीक जाकर मैने देखा ,हैरान रह गया। मंटू आखे के पत्ते तोड़ -तोड़ कर उनका दूध पिल्ले की आँखो में डाल रहा था। 
               " यह तूने क्या किया ,बेवकूफ !पिल्ला अँधा हो जायगा। "मैने चिलाकर कहा। 
मंटू ने उस पिल्ले को रख दिया और बोला ,"मैने उन दोनों की आँखो में भी आखे का दूध भर दिया है। अब देखेंगे ,ये तीनो अंधे होते है या नहीं। "
उस गाडे चिपचिपे दूध से तीनो पिल्लो की आँखे बन्द हो गयी। कुछ दिनों बाद आँखे तो शायद खुल गयी थी ,लेकिन वे अंधे हो गए थे।  
मंटू के इस कुकृत्य की जानकारी केवल मुझे ही थी। मैंने उसे उन प्यारे -प्यारे पिल्लो को अँधा बान देने के लिए बहुत बुरा -भला कहा था और वकील साहब से शिकायत करने की धमकी भी दी थी। लेकिन मंटू को एहसास हो गया था कि उसने अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिए इस प्रयोग के रूप में एक बड़ा पाप कर डाला है। उसने गिड़गड़ा कर मुझसे कहा था कि यह बात मै किसी को न बताऊ। मै शायद बताता भी नहीं ,लेकिन जब उन तीन पिल्लों में से दो ,दिन -रात कु -कु करते ,इधर से उधर भटकते मर गये ,मुझे बहुत दुःख हुआ और उस दिन मै बहुत रोया। दादी ,माँ और परिवार के अन्य सभी लोग मुझसे बार -बार पूछने लगे कि मै क्यों रो रहा हूँ ? 
                    पहले मैंने बात छिपाकर अपने मित्र मंटू को बचाने की कोशिश की ,लेकिन फिर मुझे तीसरे पिल्ले का ध्यान आ गया ,जो अभी जीवित था और उसकी जान बचाना मुझे मंटू की पिटाई से बचाने से ज्यादा जरूरी लग रहा था। इसीलिए मैंने रोते -रोते सारी बात बता दी और उस पिल्ले की आँखो का इलाज करा देने की जिद पकड़ ली। सब लोगो ने मंटू को बुरा -भला कहा। वकील साहब ने उसकी पिटाई भी की। मुझे भी बहुत सुनना पड़ा ,क्योकि मैंने भी सब कुछ जानते हुए भी बात को तब तक छिपाए रखा ,जब तक दो पिल्ले मर नहीं गये। 
                                          आखिर तीसरे पिल्ले को बचाने के प्रयास किये गये। .मैंने जिद करके उसे पाल लिया। पिताजी ने उसकी आँखो का इलाज भी कराया ,लेकिन वह अँधा  ही रहा। माँ और दादी उसकी बड़ी सेवा करती थी। मै भी उसका बहुत ध्यान रखता था। उस समय तो उसकी जान बच गयी ,लेकिन दादी जब वह बड़ा हो गया ,एक दिन घर से बाहर निकल गया और सड़क पर किसी वाहन से कुचल कर मर गया। 
                                                                  उस घटना को याद कर मै हैरान रह गया। बचपन में तीन पिल्लो की आँखे फोड़ देने वाला मंटू आज इतना बड़ा नेत्र -चिकत्स्क !इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह थी कि लगभग पैंतीस साल पहले की वह घटना ,जिसे मै भूल चुका था ,दादी को अभी तक याद थी। 
                                                                                      निश्चय ही वह घटना प्रभात को याद होगी ,तभी तो वह हम लोगो का परिचय पाते ही अचानक चुप ,गभींर और उदास हों गए थे। 
                       " लेकिन दादी ,बचपन की बात को लेकर अब डॉक्टर प्रभात को बुरा -भला कहना ठीक नहीं। '   देश में माने हुए नेत्र -चिकत्स्क है। दूर -दूर से लोग उनके पास अपनी आँखो का इलाज कराने आते है। अब तक तो हजारो लोगो को उनकी खोयी हुई नेत्र -ज्योति लौटा चुके होंगे। क्या इतनी बड़ी सेवा से उनका बचपन का अबोध अवस्था में किया हुआ पाप अब तक धूल नहीं गया होगा ?'
                                     ' कुछ भी हो ,मै उससे अपनी आँखो का इलाज नहीं कराउंगी। ' दादी ने निश्च्य के स्वर में कहा। 
दादी का स्वभाव बिलकुल बच्चो का -सा है। हठ पकड़ लेती है तो किसी के मनाये नहीं मानती। मैंने उन्हें बहुत समझाने की कोशिश की ,लेकिन वे डॉक्टर प्रभात से इलाज कराने को तैयार न हुई। आँखो में डालने की जो दवाई डॉक्टर प्रभात ने लिखकर दी थी ,वह भी नहीं खरीदने दी। परिवार के सब लोगो ने उन्हें समझाया लेकिन वे टस से मस नहीं हुई। 
               आखिर शाम को मैंने डॉक्टर प्रभात को टेलीफोन किया और दादी की जिद के बारे में बताया डॉक्टर प्रभात ने गभींर होकर सब कुछ सुना और बोले ,''तुम अपने घर का पता बताओ ,में स्वयं आकर दादी अम्मा को समझाऊंगा। '
                     लगभग एक घंटे बाद डॉक्टर प्रभात हमारे घर में थे और दादी से कह रह थे ,''दादी अम्मा !मैंने बचपन में जो पाप किया था ,उसे मै आज तक नहीं भूला हूँ और मै उस शाप को भी नहीं भूला हूँ जो आपने मुझे दिया था। जब तक आप इलाहबाद में रहीं ,मुझे देखते ही कहने लगती थी -अरे ,कमबख्त मनटुआ ,तूने मासूम पिल्लो की आँखे फोड़ी है ,तेरी आँखे भी किसी दिन इसी तरह फूटेंगी। आप के इस शाप से मुझे अपने पाप का बोध हुआ और मैंने फैसला कर लिया कि मुझे जीवन में नेत्र -चिकत्स्क ही बनना है। मेरी आँखे तो आप के शाप के कारण कभी -न -कभी फूटेंगी ही ,पर उससे पहले मै बहुत -सी आँखो को रोशनी दे जाऊँगा। उन बहुत -सी आँखो में से आँखे आप की भी होंगी ,दादी अम्मा। '
डॉक्टर प्रभात की बातो में न जाने कैसा जादू था कि दादी की ही नहीं ,हम सबकी आँखे भर आयी। दादी तो इतनी भावुक हो उठी की उन्होंने डॉक्टर प्रभात को पास बुलाकर ह्रदय से लगा लिया। 
उनके सिर पर स्न्हेपूर्वक हाथ फेरते हुए कहा ,जीते रहो ,मेरे लाल !तुम्हारी आँखो की ज्योति हमेशा बनी रहे। '
             इसके बाद दादी ने मुझसे कहा ,अरे बबुआ ,तेरा बालसखा आया है ,इसकी खातिदारी नहीं करेगा? जा इसके लिए,अच्छी -सी मिठाई लेकर आ और सुन ,इसने मेरी आँखो के लिए जो दवाइयाँ लिखी थी न ,वह भी खरीद लाना। '




























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