shardiy nvratr puja sbse phle shreeram ne ki thi
शारदीय नवरात्र पूजा सबसे पहले भगवान श्रीराम ने की थी।
शारदीय नवरात्र आश्विन मास में शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होते है। इस दौरान देश भर में माँ भगवती के नौ रूपों की विधि विधान से पूजा की जाती है। शारदीय नवरात्र के बारे में कहा जाता है कि सबसे पहले श्रीरामचन्द्र जी ने इस पूजा का प्रारंभ समुद्र तट पर किया था और उसके बाद दसवे दिन लंका विजय के लिए प्रस्थान किया और विजय प्राप्त की। मान्यता है कि तभी से असत्य पर सत्य की जीत तथा अधर्म पर धर्म की विजय की जीत के प्रतीक के रूप में दशहरा पर्व मनाया जाने लगा। शारदीय नवरात्र में दिन छोटे होने लगते है और रात्रि बड़ी। कहा जाता है कि ऋतुओ के परिवर्तन काल का असर मानव जीवन पर नहीं पड़े इसीलिए साधना के बहाने ऋषि -मुनियो ने इन नौ दिनों में उपवास का विधान किया था।
देश के हर भाग में नवरात्र की धूम अलग -अलग तरह से देखने को मिलती है जहां उत्तर भारत में मंदिरो में माँ भगवती का पूरे शृंगार के साथ पूजन किया जाता है वही गुजरात और महाराष्ट्र में गरबा का आयोजन किया जाता है तो बंगाल में मनाया जाने वाला दुरोगास्तव अलग ही छटा बिखेरता है। ज्यादातर श्रीध्दालु पूरे नौ दिन व्रत रखते है। माँ के मंदिरो विशेष रूप से माता वैष्णो देवी मंदिर में तो इस दौरान श्रीध्दालुओ का तांता ही लग जाता है।
माँ दुर्गा के नौ रूपों में पहला स्वरूप श्शेलपुत्रीश के नाम से विख्यात है। कहा जाता है कि पर्वत राज हिमालय के घर पुत्री रूप में उतपन्न होने के कारण इनका नाम श्ब्रहाचारिणीश की पूजा अर्चना की जाती है। दुर्गा जी का तीसरा स्वरूप माँ शचंद्रघंटाश का है। तीसरे दिन की पूजा का अत्याधिक महत्व माना गया है। पूजन के चौथे दिन कूष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। पाँचवे दिन संकदमाता की उपासना का दिन होता है। संकदमाता अपने भगतो की समस्त इच्छाओ की पूर्ति करती है। दुर्गा जी के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी और सातवें स्वरूप का नाम कालरात्रि है।
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मान्यता है कि सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा से ब्रह्मण्ड की समस्त सिद्दियों का द्वार खुलने लगता है। दुर्गा जी की आठवे स्वरूप का नाम महागौरी है। यह मनवांछित फलदायिनी है। दुर्गा जी के नौवें स्वरूप का नाम सिद्धिदात्री है। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली है। नवरात्र व्रत के पहले दिन प्रातः काल उठकर स्नान आदि करके मंदिर में जाकर माता की पूजा करनी चाहिए या फिर घर पर ही माता की चौकी स्थापित करनी चाहिए। कन्याओ के लिए यह व्रत विशेष रूप से लाभदायक बताया गया है। माता की चौकी को स्थापित करने के दौरान जिन वस्तुओ की आवश्य्कता पड़ती है उनमे गंगाजल ,रोली ,मौली ,पान ,सुपारी ,धूपबत्ती ,घी का दीपक ,फूल की माला ,बिल्वपत्र ,चावल ,केले का खम्भा ,चंदन ,घट ,नारियल ,आम के पत्ते ,हल्दी की गांठ ,पंचरत्न ,लाल वस्त्र ,चावल से भरा पात्र ,जौ ,बताशा ,सुगंधित तेल ,सिंदूर ,कपूर ,पंच सुगंध नैवेद्य ,पंचामृत ,दूध ,दही ,मधु चीनी ,गाय का गोबर ,दुर्गा जी की मूर्ति ,कुमारी पूजन के लिए वस्त्र , आभूषण तथा श्रींगार सामग्री आदि प्रमुख है। कथा सुनने के बाद माता की आरती करे और उसके बाद देवीसूक्तम का पाठ अवश्य करे। देवीसूक्तम का श्रध्दा व विशवास से पाठ करने पर अभीष्ट फल प्राप्त होता है। भगवती दुर्गा संपूर्ण विस्व को सत्ता ,स्फूर्ति तथा सरसता प्रदान करती है। इन्ही की शक्ति से देवता बनते है ,जिनसे विस्व की उतपत्ति होती है। इन्ही की शक्ति से विष्णु और शिव प्रकट होकर विस्व का पालन और संहार करते है। दया,क्षमा ,निद्रा ,स्मृति क्षुधा ,तृष्णा ,तृप्ति ,श्रद्धा ,भक्ति ,धृति ,मति ,तुष्टि ,पुष्टि ,शांति ,कांति ,लज्जा आदि इन्ही महाशक्ति की शक्तियां है। ये ही गोलोक में श्रीराधा ,साकेत में श्रीसीता ,श्रीरोदसागर में लक्ष्मी ,दक्षकन्या सती ,दुर्गितनाशिनी मेनकापुत्री दुर्गा है।
ये ही वाणी ,विद्या ,सरस्वती ,सावित्री और गायत्री है।
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