Vanrraj ka blidan
कुछ मनुष्य परोपकारी होते है ,सभी उनकी प्रंशसा करते है ,किंतु कभी -कभी पशु भी दूसरे साथियो के लिए बड़ा त्याग करते है।
प्रस्तुत कहानी में एक ऐसी ही घटना का वर्णन है -
वन में एक नदी के किनारे आम का एक अनोखा पेड़ था। उस पर ऐसे मीठे व रसीले आम लगते थे जिनका कोई मुकाबला नहीं था। बंदरो का एक टोला उस पेड़ पर निवास करता था। वे ही उन आमो का स्वाद लेते थे। उस टोले का मुखिया वानरराज बहुत नेक व सूझबूझ वाला बंदर था। जब मौसम आने पर आम के पेड़ के ऊपर बौर आते तो वह बंदरो से नदी के ऊपर फैली टहनियों के सारे बौर नष्ट करवा देता था। वह कहता था -"देखो , इन टहनियों पर आम लगे तो वे नदी के पानी से गुजरेंगे। मानव उन आमो को चखकर इस पेड़ को खोजते हुए यहाँ आएँगे। उसके बाद मानव सारे फल ले जाया करेंगे। "
एक वर्ष नदी के ऊपर फैली टहनियों में कुछ बौर बच गए। आम लगे और पकने पर वे पानी में गिरे। वे आम कुछ मछुआरों के हाथ लग गए।
मछुआरों ने फल चखे तो वे दंग रह गए। इतने मीठे ,स्वादिष्ट और सुगंधित आम उन्होंने पहले कभी नहीं खाए थे। मछुआरों का मुखिया कुछ आम लेकर राजा के दरबार में गया और राजा को वे आम पेश किए। राजा भी आम खाकर प्रसन्न हुआ। जिसने खाया उसी ने प्रंशसा की।
राजा ने पूछने पर मछुआरे मुखिया ने बताया कि आम नदी में बहते हुए आए थे। राजा अगले दिन अपने सेनिको को लेकर उस अलौकिक पेड़ की तलाश में निकल पड़ा। यह सोचकर कि पेड़ नदी किनारे होना चाहिए। नदी किनारे कुछ आगे जाते ही राजा को आम का पेड़ दिखाई दे गया। राजा के सैनिको ने खूब आम तोड़े और राजा को दिए। राजा ने खाए और सैनिको ने भी खूब खाए। अगले दिन सारे आम तोड़ने का निर्णय हुआ। राजा का खेमा पेड़ के नीचे ही लग गया। रात को बंदर पेड़ पर बसेरा करने वापस लौटे। बंदर शोर मचाने लगे तो राजा को क्रोध आ गया। उसने सेनानायक को बुलाकर कहा -"इस पेड़ पर बंदरो का वास है। कल बंदरो को मार गिराओ। इस पेड़ पर बंदर नहीं रहने चाहिए। "
वानरराज ने राजा की आज्ञा सुन ली। उसने बंदरो से कहा -"हमे तड़के ही यह पेड़ छोड़कर नदी के पार किसी सुरक्षित जगह पर जाना होगा। "रात -भर में वानरराज ने नदी पार करने का हल भी खोज लिया था। वह बंदरो को नदी के किनारे के पेड़ पर ले गया। वानरराज ने एक लंबी व मजबूत लता पेड़ की टहनी से बाँधी। दूसरा सिरा अपने पैर में बांधा और बोला -"मै लंबी छलांग लगाकर नदीं के उस पार उस अंजीर के पेड़ पर पहुँचकर दूसरा सिरा उसकी डाल से बांधूंगा। फिर सब लता पर से चलकर उस पार पहुंच जाना।
वानरराज ने छलांग लगाई। उसने अंजीर के पेड़ की डाली तो पकड़ ली ,पर लता छोटी पड़ गई। लता तन गई। वानरराज का शरीर भी तन गया। वानरराज ने बंदरो को आने का संकेत दिया। एक बार में एक -एक करके सारे बंदर लता व वानरराज के शरीर पर से होकर पेड़ पर पार उतरने लगे।
वानरराज दाँत भींचकर पीड़ा सहता रहा। अंत में एक दुष्ट बंदर उतरा जो वानरराज को हटाकर खुद मुखिया बनना चाहता था। उसने डाली पर उतरने से पहले वानरराज को जोर से लात मारी। वानरराज का हाथ डाली से छूट गया वह पत्थर पर नीचे गिरा। राजा यह द्रश्य चकित होकर देख रहा था। वानरराज को गिरते देख राजा नदी में कूदा और नदी पार पहुंचकर प्राण त्यागते वानरराज के पास पहुंचा उसे गोदी में उठाकर बोला -"धन्य हो वानर ,तुमने दूसरे बंदरो के लिए अपना बलिदान दिया। "
इस घटना का राजा पर इतना प्रभाव पड़ा कि
उसने उसके बाद शिकार करना छोड़ दिया व पूरी तरह अपनी प्रजा की भलाई के कार्यो में लग गया
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