Yurop ki yatra
यह मेरी पहली विदेश यात्रा थी। दोस्तों की सलहा से मैने सर्दी के लिए गर्म कपड़े बनवाये। मै रोजाना खादी कपड़े ही पहने करता था। इस कहानी में डॉक्टर राजेंद्र जी की यूरोप यात्रा का जिक्र है।
कपड़े की काट -छाट भी देशी रखी। अंग्रेजी कपड़े न पहनने का निश्चय किया। फलस्वरूप दो बाते हुई। बहुत कम खर्च में काम के लायक काफी कपड़े तैयार हो गए। कपड़े हिंदुस्तानी थे। इसलिए उसमे कुछ भूल अथवा भद्दापन भी हो तो कोई विदेशी समझ नहीं सकता था। अंग्रेजी कपड़े और रहन -सहन धारण करने पर उन लोगो के फैशन और रीती -निति के अनुसार ही चलना -फिरना ,कपड़ा पहनना और खाना -पीना पड़ता है।
अपना रहन -सहन कायम रखने से यह सब झँझट दूर हो जाता है। खासकर मुझ जैसे आदमी के लिए यह झंझट कुछ कम नहीं है क्योकि मैने कभी जीवन में कपड़े और फैशन पर ध्यान दिया ही नहीं। मैंने कपड़ो को ही शरीर गर्म रखने और लज्जा -निवारण का साधन मात्र ही समझा है।
जहाज पर मेरी पोशाक लोगो को कौतुहल का केंद्र बनी रही। एक पारसी दंपति और एक अंग्रेज सज्जन मेरी ओर विशेष आकर्षित हुए। गाँधी जी ,खादी और शाकाहारी के संबंध में बातचीत करने में समय से कट गया। रास्ते में मुझे ज्ञात हुआ कि जब तक जहाज स्वेज से गुजरता है ,थामस -कुक कम्पनी की ओर से ऐसा प्रंबध रहता है कि जो यात्री चाहे ,वह मोटरगाड़ी द्वारा जाकर कैरो नगर देखकर आ सकता है। मैंने यह अच्छा समझा। मेरे साथ कुछ और यात्रिओ ने भी थामस -कुक के साथ वहाँ जाने का प्रबंध कर लिया था।
हम लोग सवेरे 5 बजे जहाज से उतरकर मोटरगाड़ी पर कैरो पहुंचने पर मुँह -हाथ धोने और नाश्ता करने के लिए हम एक होटल में ले जाये गए, फिर हम कैरो का अजायबघर देखने गए। वहाँ पिरामिडो की खुदाई से निकली वस्तुए अब तक सुरक्षित रखी है। प्राचीन मिस्त्र के कितने ही बड़े नामी और प्रतापी बादशाहो के ममी अर्थात शव ,जो पिरामिडो से निकले है ,वहाँ सुरक्षित रखे है।
अब देखने में वे काले पड़ गए है ,पर उनके चेहरे और हाथ - पैर ज्यो के त्यों है। वे जिस कपड़े में लपेटकर गाड़े हुए थे ,वह कपड़ा भी अभी तक वैसा ही लिपटा हुआ है। वह कपड़ा बहुत ही बारीक़ हुआ करता था। कहते है ,उन कपड़ो का निर्यात भारतवर्ष से ही हुआ करता था। उन दिनों वहाँ के निवासियों का विशवास था कि आराम पा सकता है।
इसी विश्वास के अनुसार ,पिरामिडो के अंदर ,शव के साथ सभी आवश्यक वस्तुए गाड़ी जाती थी। पहनने के कपड़े और गहने ,बैठने के लिए चौकी ,खाने के लिए अन्न ,शृंगार के सामान ,सवारी के लिए रथ और नाव तक रखे जाते थे। उन्हें देखने से ज्ञात होता है कि उस समय भी लोग सोने का व्यवहार जानते थे।
सुना है कि इसी प्रकार की खुदाई में मोहन -जो -दड़ो सिंध में जो गेहू निकला है ,वह बो देने पर उग गया। संग्रहालय की वस्तुओ और विषेशकर प्रतापी राजाओ के शव देखकर यह मालूम होने लगता है कि हम जो कुछ अपने बड़प्पन के मद में करते है ,वह सब कितना तुच्छ और अस्थायी है। जिन बादशाहो के संबंध में कहा जाता है कि उन्होंने अपने जमाने में बहुत अत्याचार किये थे। उनके शव उसी तरह आज भी पड़े है।
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