acha insan ke gun

किसी के किए उपकार को याद रखना एक इंसानियत कहलाती है। यह एक ऐसा गुण जो मनुष्य की शोभा बढ़ाता है। प्रस्तुत है इसी पर आधारित यह कहानी। 

मेवाड़ के महाराजा अपने एक सेवक को हर समय अपने पास रखते थे -चाहे युद्ध का मैदान हो ,चाहे मंदिर। एक बार वे शिव के दर्शन करने गए तो उस सेवक को भी अपने साथ ले गए। दर्शन करने के बाद वे तालाब के किनारे टहलने गए। उन्हें एक वृक्ष पर ढेर सारे फल लगे हुए दिखाई दिए। 
   उन्होंने एक फल लिया और उसकी चार फाँक की। एक फाँक सेवक को देते हुए उन्होंने पूछा -"बताओ ,कैसा स्वाद है ?" सेवक ने फल खाया और कहा -"मीठा बहुत है। किंतु महाराज ,एक और दीजिए। " महाराज ने एक फाँक और दे दी। उसने कहा -"किया स्वाद है ! आनद आ गया। कृपया एक और दीजिए। "                                                        महाराज ने तीसरी फाँक भी दे दी। उसे खाते ही वह सेवक बोला -"बिल्कुल अमर फल है। वह भी दे दीजिए। "और उसने अंतिम फाँक भी माँग ली। महाराज को क्रोध आ गया। उन्होंने कहा -"तुम्हे शर्म नहीं आती ! तुम्हे सब कुछ पहले मिलता है ,तब भी तुम इतनी हिम्मत कर रहे हो मेरे सामने ! जाओ ,तुम्हे नहीं दूँगा यह अंतिम फाँक। "यह कहते हुए महाराज ने वह फाँक मुँह में रखी ही थी कि उसे एकदम उगल दिया।                                                                               वे बोले -"क्या इतना कड़वा फल खाकर भी तुम यह कहते रहे कि मीठा है ,अमृततुल्य है। तुमने क्यों कहा ऐसा ?" सेवक बोला -"महाराज ,जीवन भर मीठे फल देते रहे ,अगर आज कड़वा फल आ गया तो कैसे कहुँ कि यह कड़वा है। किया ये मेरी इंसानियत होती !"                                                   महाराज ने उसे अपने गले से लगा लिया और इंसानियत के लिए उसे पुरस्कृत किया। इंसानियत एक ऐसा भाव है जो कड़वे छणो को भी मधुरता में बदल देता है। हमे कुदरत के दवारा अनुकूल परिस्थितयो के मीठे फल बहुत प्राप्त होते है यदि कभी कठनाई के कड़वे फल मिले तो उन्हें भी प्रसन्नता से स्वीकार करना चाहिए। 

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