bhart ke sanskar

अपने बच्चो को दे अच्छे संस्कार। 

भारत महान था ,सोने की चिड़िया कहलाता था। इसलिए नहीं कि उसकी सीमाएँ विस्तृत थी ,अपितु इसलिए कि यहाँ का हर व्यक्ति सुसंस्कृत था। जो भी कर्म हम करते है ,वह हमारे संस्कारो से प्रेरित होकर किया जाता है। हम वैसा ही कर्म करेगें ,जैसे हमारे संस्कार होंगे। ये संस्कार हमारे आज के क्रिया -कलापो के दादा -दादी ,नाना -नानी ,माता -पिता तथा पूर्व जन्मो से संचित होते है। इनको अच्छा बनाने का काम माता -पिता से ही प्रारंभ होता है। बच्चो को कैसे बनाना है -वह माता -पिता ,गुरुजनो के हाथ में है। हमारे जीवन से दोषो को निकालने के लिए ,गुणों को लाने के लिए और जो भी कमी है उसको पूर्ण करने के लिए संस्कारो की अपेक्षा होती है। 
                                       बच्चो के शरीर को ,उनके चरित्र को ,उनकी विद्या को ,उनकी बुद्धि को और जीवन -प्रणाली को संवारने के लिए जो क्रिया -कलाप किए जाते है -उनको संस्कार कहते है। बालको को शिक्षित करने के लिए जहाँ एक और विषय की जानकारी देनी आवश्यक है ,वही दूसरी और उन्हें सुसंस्कारित करना ,नैतिक शिक्षा देना ,जीवन का व्यवहारिक पक्ष उजागर करना उससे भी अधिक आवश्यक है। हम आज पहली बात पर ही ध्यान दे रहे हैऔर दूसरी बात पर हमारा ध्यान न के बराबर है। परिणामस्वरूप आज हमारे बच्चे जितनी जानकारी लिए हुए है ,वह बेजोड़ है।                                                                                                                                                                                           फिर भी हम आज के वातावरण को देखते हुए सफल नहीं कहे जा सकते। भारतीय संस्कृति और संस्कार देने पर जीवन -मूल्यों का कोई पक्ष भी अछूता नहीं रहता बड़ो का आदर ,शक्तिशाली कैसे बने ,निडरता ,बुद्धिमता ,पर्व एवं जन्मदिन मनाना आदि जीवन के सर्वागीण पक्षों में हमारी उन्नित निश्चित है। यह हम सबका अनुभव है कि बच्चे विषय- ज्ञान में पारंगत होने पर भी चारित्रिक एवं नैतिक -द्रष्टि से सफल नहीं है। यह हमारे सामने एक ज्वंलत समस्या है और भारत का भविष्य केवल इसी आधार पर उज्ज्वल होने की संभावना है। आइए ! हम सब मिलकर इस ओर सतत प्रयास करे और अपने बच्चो को चारीतरक एवं नैतिक शिक्षा से ओत -प्रोत कर दे। 
                                                                                                                 हमे यह आभास है कि राम और कृष्ण को जन्म देने के लिए कौशल्या और देवकी चाहिए। लव -कुश को विकसित करने के लिए जहां सीता माता के प्रयास को सराहा जा सकता है ,वही ऋषि वाल्मीकि जैसे महान गुरु का मार्ग - दर्शन अदिव्तीय है। तभी वे इतने शूरवीर एवं मेधावी बन पाए। भारतीय योग सस्थान ने भी इस ओर  अपना प्रयास जारी रखा है।  जहाँ -जहाँ भी बच्चो के योग खोलने का आहवान हुआ है ,वहाँ -वहाँ कर्मठ कार्यकर्ताओ को भेज कर योग के माध्यम  उन्हें सुसंस्कारित करने का सतत प्रयास चल रहा है।                                                                                                                       सभी परिवारों से अनुरोध है कि देश की प्रगति के लिए अपने बच्चो को योग केन्द्रो में भेज कर सहयोग दे। हमारे बच्चे ,चरित्रवान बनने पर देश की अमूल्य निधि होंगे और ये कल के भारत  को गौरवान्वित भी करेंगे। 

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