Bhart ko aajad krne ke liye kdi mhnt kri in mhapursho ne

आज हम उन महापुरषो को भूलते जा रहे है जिनकी वजह से आज हम आजादी का आनंद ले रहे है। हम सब एक बार फिर उनको याद कर लेते है। 

1857 के विद्रोह के बाद ,भारत के लोगो ने महसूस किया कि भारतीय समाज में अनेक सामाजिक कुरीतियाँ ,जैसे --जाति प्रथा ,सती प्रथा ,बाल विवाह तथा बालिका शिशु हत्या ऐसी कुरीतियाँ थी ,जो समाज का नाश कर रही थी तथा इसे पिछड़ा बना रही थी। ये भारत तथा इसकी जनता की बुरी दशा का कारण थी। 
         कुछ शिक्षित भारतीयों ,जैसे --राजा राममोहन राय ,ईश्वर चंद्र विद्यासागर ,सर सैय्यद अहमद खां ,नारायण गुरु आदि ने अनुभव किया कि विधवाओं तथा स्त्रियों के उत्थान के लिए इन पुरानी धारणाओं तथा अंधविश्वासों को समाप्त करना आवश्यक है। उन्होंने अनुभव किया कि समाज में इन परिवर्तनों के बिना भारत एकजुट होने तथा अंग्रेजो से लड़ने में सक्षम नहीं हो सकता। 
                                        यह कार्य लोगो को शिक्षित करके किया जा सकता था। अनेक समाज -सुधारको ने इन कुरीतियों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। वे एक आधुनिक समाज का निर्माण करना चाहते थे। उन्होंने अपनी एक पार्टी बनाई। उन्होंने अंग्रेज शासको का ध्यान अपनी समस्याओ की और खींचने का प्रयास किया। 

                                     भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस का जन्म कब हुआ ?

कांग्रेस का जन्म सन 1885 में एक सेवानिवृत्त आई 0 सी 0 एस 0 अधिकारी ए 0 ओ 0 हयूम ने की थी। इसके पहले अध्यक्ष WBLU ० C ० बनर्जी थे। इस सगंठन का उद्देश्य अंग्रेजो की सरकार का ध्यान  कठनाई तथा माँगो की ओर खींचना था। 
भारतीय राष्ट्रिय कान्ग्रेस का पहला अधिवेशन  मुंबई में शुरू हुआ। इसका आयोजन डब्ल्यू 0 सी 0 बनर्जी की अध्यक्षता में हुआ। इसमें देश भर के 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। उस समय कान्ग्रेस का मुख्य उद्देश्य अंग्रेजो द्वारा लोगो का जीवन -स्तर सुधारना था। भारतीय राष्ट्रिय कान्ग्रेस के शुरू के नेता थे -सुरेंद्रनाथ बनर्जी ,दादा भाई नौरोजी ,गोपाल कृष्ण गोखले ,मदनमोहन मालवीय ,फिरोज जहाँ माहा आदि। उन्होंने लोगो में राष्ट्रीयता की भावना भरने के लिए बहुत कार्य किये कान्ग्रेस के कुछ नेता धैर्य ओर अनुसरण में विश्वास रखते थे। वे नरम स्वभाव के कहलाये। किन्तु कुछ नेता ,जैसे --बाल गंगाधर तिलक ,बिपिन चंद्र पाल ,लाला लाजपतराय ,वी ० ओ ० सी ० पिल्ली का सोचना था कि अग्रेजो को अपनी समस्या समझाने तथा स्वंत्रता प्राप्ति के लिए इच्छा दर्शाने के लिए शक्तिशाली कार्य करने की आवश्यकता है ये गर्म पंथी कहलाये। 
                       बाल गंगाधर तिलक ने घोषणा की ,स्वंत्रता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मै इसे लेकर रहूंगा। 
उन्होंने अपने समाचर -पत्र  द केसरी में अग्रेजो के खिलाफ लिखा। उन्हें कई बार गिरफ्तार किया गया। 


                                         बाँटो और राज करो 

कुछ समय बाद ,भारतीय राष्ट्रिय कान्ग्रेस एक शक्तिशाली राष्ट्रिय संगठन बन गया। इसके सदस्यो की संख्या बढ़कर सैकड़ो  से हजारो में हो गयी। जिनमे वकील ,पत्रकार ,व्यापारी ,शिक्षक ,जमींदार और उद्योगपति थे। 
भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस दिन -प्रतिदिन एक शक्तिशाली तथा हक्कित में राष्ट्रिय संगठन बनता जा रहा था। पूरा देश मार्ग -प्रदर्शन के लिए इसकी ओर देख रहा था। इससे अंग्रेज डर गए। उन्होंने इसके आंदोलनों ओर उनके कामो को दबाने के लिए सभी प्रयास किये। तब उन्होंने स्वंत्रता आंदोलन को कमजोर करने के लिए बाँटो और राज करो की चाल अपनाई। क्योकि बंगाल हिन्दुओ के लिए था। 1905 में बंगाल के विभाजन की घोषणा कर दी गयी। 
सभी भारत के लोगो ने इस निर्णय का विरोध किया। वे जानते थे की अंग्रेज इन्हे बाँटना  चाहते है। अंग्रेजो की बंगाल विभाजन की नीति के विरुद्ध में भारतीय लोगो ने अंग्रेजी वस्तुओ का बहिष्कार करने का निश्चय किया। इसका तातपर्य केवल भारत में बनी वस्तुओ का उपयोग करना था। विद्यार्थी और महिलाये भी इस आंदोलन से जुड़ गए। इस आंदोलन को स्वदेशी आंदोलन का नाम दिया गया। उन्होंने जुलूसों का संगठन किया तथा लोगो को उन दुकानों तक जाने की अनुमति नहीं दी जिन पर अंग्रेजी वस्तुएँ बेचीं जाती थी। बहुत से स्थानों पर लोगो ने इग्लेंड में बने कपड़ो तथा अन्य सामानो की होली जलाई। अंग्रेजी वस्तुएँ बेचने वाली बहुत सारी दुकाने लूटी गयी। 
अंग्रेज इस आंदोलन का सामना नहीं कर सका। 1911 में उन्होंने बंगाल विभाजन केंसिल कर दिया। 
     

                                              क्रांतिकारी 

कुछ लोग का विश्वास था की हिंसा के विरुद्ध हिंसापूर्वक लड़ना चाहिए। इस विचार के लोग क्रांतिकारी कहलाये। एक 14 साल का बालक खुदीराम बोस को अंग्रेजो ने क्रांतिकारी में शामिल होने के करण फांसी पर लटका दिया। भगत सिंह ,चंद्रशेखर आजाद ,वीर सावरकर ,सुखदेव ,रामप्रसाद बिस्मिल ,बी ० के ० दत्ता ,जतिन दास तथा अशफाकउल्ला खां आदि थे। उनमे अनेक क्रांतिकारियों ने अपनी मातृभूमि की सेवा  के लिए अपना बलिदान कर दिया। बहुत से लोगो ने भारत की स्वंत्रता के लिए देश के बाहर से संघर्ष किया। मैडम कामा जेनेवा गई तथा वंदे मातरम नामक एक समाचार पत्र लिखा। लाला हरदयाल ओर पंजाब के अन्य लोगो ने अमेरिका में गदर पार्टी का गठन किया और भारत के क्रांतिकारियों की सहायता की। 1914 में विश्वयुद्ध शुरू हो गया। अंग्रेज सरकार ने घोषणा की कि युद्ध खत्म होने के बाद भारत को आजादी दे दी जायगी। किंतु युद्ध के बाद अंग्रेज सरकार ने केवल कुछ सुधारो की घोषणा की। भारत के लोग इन सुधारो से पूरी तरह असंतुष्ट थे। लोगो में पहले से बढ़ रहे असंतोष को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने सख्त कानून बनाए। इन कानूनों के अनुसार लोगो को बिना जाँच -पड़ताल के जेल में बंद किया जा सकता था। इसके कारण लोगो में भरी असंतोष फैल गया। ,अनेक धरने तथा प्रदर्शन हुए जिन्हे सरकार ने निर्दयता से दबा दिया। इसी समय एक भारतीय वकील मोहनदास करमचंद गाँधी दक्षिणी अफ्रीका से भारत लौटे। उन्होंने यहाँ हमारे स्वंत्रता संघर्ष का नेतृत्व किया। 

                                        

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