Krmyogi Balk
जो लोग अपने कार्य में विश्वास रखते है ,उन्हें सफलता के लिए किसी की सहायता नहीं होती। इस कहानी में यही बताया गया है।
एक बालक मन लगाकर पढ़ता था। उसकी बुद्धि थी और वह मेहनत भी करता था। इसलिए वह अपनी कक्षा में हमेशा प्रथम आता था। उसकी मेहनत देखकर विद्या की देवी सरस्वती खुश हुई। वह एक दिन बालक के पास आकर खड़ी हो गई। बालक दीए के प्रकाश में पढ़ रहा था। उसने इधर -उधर आँख उठाकर भी नहीं देखा। बालक की एकाग्रता पर देवी को बड़ा आश्चर्य हुआ। देवी बोली --बालक !देखो तो ,तेरे सामने कौन है ?विधार्थी ने आंखे उठाई। सामने खड़ी ममतामयी महिला को उसने देखा ,प्रणाम किया और पुनः पढ़ने में लग गया। देवी बालक की तल्लीनता देखकर मुग्ध हो गयी। वह उसके साथ बात करना चाहती थी।
उसने पूछा --"वत्स !तेरे सामने कौन है ,तू जानता है ?" बालक खड़ा हुआ और नरम भाव से बोला --"माँ !मै नहीं जानता। "देवी ने कहा ---"वत्स ! मै विद्या की देवी सरस्वती हूँ। तेरी मेहनत देखकर मै खुश हूँ। मै तुझे कुछ देना चाहती हूँ। बोल ,क्या लेगा ?"
बालक बोला --"माँ ! आपने बड़ी कृपा की। मुझे दर्शन दिए। मुझे अभी किसी चीज की जरूरत नहीं है। "
माँ सरस्वती ने बच्चे को मिठाई ,खिलौने आदि का बहुत लालच दिया ,परंतु वह बालक इन सब में रूचि नहीं ले रहा था। देवी ने उससे कहा --"तू कोई वरदान मांग ले। " बालक ने सोचा --'मेरी माँ ने मेहनत करना सिखाया है ,फिर मै किसी से कुछ मांगकर भिखारी क्यों बनूँ। 'वह कुछ बोला नहीं। देवी बोली --"तू चाहे तो मै बिना पढ़े ही पास कर दूँगी। "विद्यार्थी इस बात के लिए भी तैयार नहीं हुआ। आखिर में देवी बोली --"वत्स !मै कुछ दिए बिना नहीं जाती। तुझे कुछ माँगना ही होगा। "विद्यार्थी का मन मांगने के लिए राजी न था।
फिर भी देवी का इतना आग्रह देखकर वह बोला --"अच्छा देवी माँ !यदि आप मुझे कुछ देना ही चाहती है तो मेरे इस दीए में थोड़ा -सा तेल डाल दे ,ताकि दीया न बुझे और मेरी पढ़ाई में विघ्न न पड़े।
देवी विद्यार्थी की इस माँग को सुनकर तो उसके प्रति और अधिक दयालु हो उठी। वह तो उसे बहुत कुछ देना चाहती थी ,किन्तु विद्यार्थी कुछ भी लेने को तैयार नहीं था। आखिर देवी दीए में तेल भरकर चली गई और विद्यार्थी पढ़ता रहा। अपनी मेहनत से ही वह पूरे स्कूल में प्रथम आया।
ऐसे स्वाभिमानी और कर्म में आस्था रखने वाले बच्चे ही राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान देते है और देश का गौरव बढ़ाते है।
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