Pnna dhaay ki khani
पन्ना धाय के बलिदान की कहानी इतिहास में अमर है। इस कहानी में हम एक किस्सा उनका लिख रहे है।
चित्तोड़ के महाराणा सांगा स्वर्ग सिधार चुके थे। उस समय उनके पुत्र उदयसिंग की अवस्था छह वर्ष ही थी। इसलिए शासन की बागडोर उदयसिंग के युवा होने तक उसके चचरे भाई बनवीर के हाथो में सोप दी गयी। बनवीर बहुत ही गुस्से वाला और अत्याचारी था।
राज्य मिलने पर उसके मन में लालच आ गया। उसने सोचा कि मै तभी तक राजा हूँ ,जब तक उदयसिंह बड़ा नहीं होता। इसलिए वह उदयसिंह को अपने रास्ते से हटाकर स्वयं राजसिंहासन हथियाने के उपाय सोचने लगा। कुंवर उदयसिंह का पालन -पोषण पन्ना धाय कर रही थी। वह बहुत स्वमीभगत थी। उसे बनवीर की चाल का पता था। एक रात पन्ना धाय राजकुमार और अपने बेटे चंदन को सुला रही थी। उसे पता चला कि बनवीर उदयसिंह का वध करने के लिए आने वाला है। उसने अपने बेटे को चंदन को उदयसिंह के बिस्तर पर सुला दिया और उदयसिंह को पत्तलो के टोकरे में छिपाकर सेवक कीरतबारी के द्वारा सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने का निश्च्य किया। पन्ना ने कीरतबारी से कहा ,"तुम टोकरा लेकर नदी किनारे पहुँचो ,मै शीघ्र वहाँ आउंगी। मेरी प्रतीक्षा करना। " ईमानदार और स्वमीभगत देवक ने ऐसा ही किया। कीरतबारी के जाते ही बनवीर हाथ में नंगी तलवार लिए वहाँ पहुंचा।
उसने आते ही पूछा --"उदयसिंह कहाँ है ?" पन्ना धाय ने कलेजे पर पत्थर रखकर चंदन की ओर संकेत कर दिया। बनवीर उधर बढ़ गया। उसने अट्टहास करते हुए कहा -"यही मेरे मार्ग का कांटा है। आज इसे हटाकर ही रहूंगा। "बनवीर ने सोए हुए बालक पर तलवार का वार कर दिया। रक्त की धार फुट पड़ी। बनवीर रक्त से सनी हुई तलवार लिए चला गया। पन्ना धाय मूक बनी यह सब देखती रही। उसकी आखो से आँसू तक नहीं आए। उसने कर्तव्य का पालन करने के लिए अपने दिल के टुकड़े चंदन का बलिदान कर दिया। पन्ना ने अपने पुत्र की मृत्यु की भनक तक किसी को नहीं लगने दी। वह रात को नदी किनारे पहुंची और उदयसिंह को लेकर किसी सुरक्षित स्थान पर पहुंच गयी। बड़ा होकर उदयसिंह चित्तोड़ का राजा बना। महाराणा प्रताप इसी उदयसिंह के पुत्र थे। पन्ना धाय ने सिसोदिया वंश की रक्षा के लिए जो मूल्य चुकाया ,शायद ही संसार की किसी माता ने चुकाया हो। उनके कर्तव्य ,त्याग एवं बलिदान के लिए उनको सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।
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