प्रस्तुत कहानी में लेखक ने वर्तमान स्कूलों की शिक्षा -पद्धति पर करारी चोट करते हुए उसे बच्चो के लिए व्यावहारिक बनाने की बात कही है। जब तोत्तो -चान ने नये स्कूल का गेट देखा तो वह ठिठक गयी। अब तक जिस स्कूल में वह जाती रही थी उसका गेट सीमेंट के दो खम्भों का बना था और गेट पर बड़े -बड़े अक्षरों में स्कूल का नाम लिखा था ,पर इस स्कूल का गेट तो पेड़ के दो तनो का था। उन पर टहनियाँ और पत्ते भी थे। 'अरे ,यह गेट तो बढ़ रहा है ',तोत्तो -चान ने कहा। 'यह बढ़ता जायेगा ,और एक दिन शायद टेलीफोन के खम्भे से भी ऊंचा हो जायेगा। ' गेट के ये दो खम्भे असल में पेड़ ही थे ,जिनकी जड़े मौजूद थी। कुछ और पास पहुंचने पर तोत्तो -चान ने अपनी गर्दन टेढ़ी कर स्कूल का नाम पढ़ना चाहा। टहनी पर टँगी नाम की तख्ती भी हवा से टेढ़ी हो गयी थी। 'तो -मो -ए गा -कु -एन। ' तोत्तो -चान माँ से पूछना चाहती थी कि तोमोए का मतलब क्या होता है ,तभी अचानक उसे एक चीज दिखी और उसे लगा जैसे वह सपना देख रही हो। वह बैठ गयी ताकि झाड़ियों के बीच से अच्छी तरह देख पाये। उसे अपनी आँखो पर विश्वास नहीं हो रहा था।
Comments