Panch prrmesver
हमे अपने कर्तव्य का पालन पूरी निर्भीकता से करना चाहिए। इस कहानी में यही संदेश दिया गया है।
अलगू चौधरी और जुम्मन शेख में गाढ़ी मित्रता थी। अलगू चौधरी ने जुम्मन शेख के पिता से उसके साथ ही शिख्सा पायी थी। दोनों को एक -दूसरे पर भरोसा था और आड़े समय में दोनों मित्र एक -दूसरे का साथ खुलकर देते थे। अलगू चौधरी कही बाजार जाता तो अपना घर जुम्मन के भरोसे छोड़ जाता। इसी तरह जुम्मन शेख अपने घर -दवारा की जिम्मेदारी अलगू चौधरी को सौंप जाता था।
जुम्मन की एक बूढ़ी मौसी "खाला "थी। जुम्मन के सिवाय इस दुनिया में उसका कोई नहीं था। वह जुम्मन के साथ ही रहती थी। जब तक उसने अपने खेत व घर की सपत्ति जुम्मन के नाम नहीं लिख दी ,तब तक उसकी पूरी खातिदारी होती रही ,लेकिन सपंत्ति लिखते ही उसकी खातेदारी में कमी आ गयी।
यहा तक की रोटी -दाल के भी लाले पड़ने लगे। जुम्मन की पतनी गर्म मिजाज की थी। वह रोटियों के साथ कड़वी बातें भी कहने लगी "-बुढ़िया कब तक जियेगी। दो तीन बीघा ऊसर जमीन क्या दे दी ,मानो हमे खरीद लिया। जितना रुपया इसके पेट में झोंक चुके ,उतने से तो अब तक गांव खरीद लेते। '
जुम्मन शेख भी निष्ठुर हो गया था। कुछ दिन खालाजान ने सुना और सहा ,परन्तु जब न सहा गया तो जुम्मन से शिकायत की। जुम्मन ने उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया। अंत में एक दिन उसकी मौसी ने कहा -"बेटा !तुम्हारे साथ मेरा निरवहा न हो सकेगा। तुम मुझे रुपया दे दिया करो ,मै अपना पका -खा लिया करूंगी। "
जुम्मन ने दृष्टाता से उत्तर दिया -"रूपये क्या यहां फलते है ?" मौसी ने नम्रता से कहा -"मुझे भी कुछ रुखा -सूखा चाहिए कि नहीं। "
जुम्मन ने कुरद्ध होकर कहा -" तो कोई यह थोड़े ही समझा था कि तुम मौत से झगड़कर आई हो ?"
मौसी बिगड़ गई और उसने मामला पंचायत में पेश करने की धमकी दी।
जुम्मन हँसकर बोले -"हा , जरूर पंचायत करा लो। फैसला हो जाए। मुझे भी यह रात -दिन की खटपट पसंद नहीं। "
पंचायत में किसकी जीत होगी ,इस विषय में जुम्मन को कुछ भी संदहे नहीं था। ऐसा कौन था ,जो शत्रु बनाने का साहस कर सके।
मौसी ने दौड़ -धूप करके पंचायत बैठाई। जब सरपंच चुनने की बात पर जुम्मन आनाकानी करने लगा ,तब खालाजान ने अलगू चौधरी को ही सरपंच स्वीकार किया। अलगू ने कहा -" जुम्मन मेरा मित्र है। मुझे सरंपच मत बनाओ। "
मौसी ने गंभीर स्वर से कहा -" बेटा ! दोस्ती के लिए कोई अपना ईमान नहीं बेचता। पंच न किसी के दोस्त होते है ,न किसी के दुश्मन। पंचो के दिल में खुदा बसता है। पंचो के दिल से जो बात निकलती है ,वह खुदा की तरफ से निकलती है। "
जुम्मन यह सोचकर मन ही मन खुश था कि मेरा मित्र ही सरपंच बना है। निश्च्य ही मेरे पक्ष में फैसला देगा।
मौसी की बात सुनकर अलगू चौधरी का सोया ईमान जाग उठा। वह सरपंच बना। उसके आस -पास अन्य पंच बैठे। बूढी खाला ने उनसे विनती की -" पंचो , आज तीन साल हुए , मैने सारी जायदाद अपने भांजे जुम्मन के नाम लिख दी थी। जुम्मन ने मुझे जीवन -भर रोटी ,कपड़ा देना कबूल किया था। मुझे न पेटभर रोटी मिलती है ,न तन को कपड़ा। बेकस बेवा हूँ , कचहरी -दरबार नहीं कर सकती। तुम्हारे सिवा और किसे अपना दुःख सुनाऊ ? तुम लोग जो रहा निकाल दो , उसी पर चलू। मै पांचो का हुक्म सिर -माथे चढ़ाउंगी। "
पंचो ने बुढ़िया के बारे में विचार किया। जुम्मन को पूरा विस्वाश था कि अब बाजी मेरी है। परंतु अलगू ने जुम्मन से ऐसे -ऐसे प्रशन किए कि उसके होश ठिकाने लग गए। जुम्मन हैरान था कि क्या अलगू उसकी दोस्ती भूल गया ,जो इस मामले में ऐसे प्रशन कर रहा है। आखिर अलगू ने फैसला सुनाया -" जुम्मन शेख ! पंचो ने इस मामले पर विचार किया। हमारी राय यह है कि खालाजान को माहवार खर्चा दिया जाए ,यदि तुम इस बात से राजी नहीं हो तो उनकी जायदाद की तुम्हारे नाम रजिस्ट्री रद्द समझी जाए। "
इस फैसले ने जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की दोस्ती की जड़ हिला दी। वह अलगू चौधरी से बदला लेने का मौका ढूढ़ता रहता। शीघ्र ही उसे ऐसा मौका मिल गया।
अलगू ने बैलो की नई जोड़ी खरीदी थी। दोनों बैल मजबूत और कमाऊ थे। पंचायत का एक महीना पूरा नहीं हुआ था कि दैवयोग से उनमे से एक बैल मर गया। जुम्मन ने दोस्त से कहा -"यह दगाबाजी की सजा है। इंसान भले ही संतोष कर जाए ,पर खुदा बड़ि की सजा देकर रहता है। " अब अकेला बैल अलगू के काम का नहीं था।
इसलिए उसने गांव के ही समझू सहु को बैल बेच दिया। वह ईका -गाड़ी हाँकते थे। एक महीने में बैल का दाम चुकाने का वायदा तरह।
समझू शाहू गांव से अनाज ,गुड़ आदि लादकर मंडी ले जाता ,वहां से नमक ,तेल आदि लाता। नया और मजबूत बैल पाकर वह दिन में तीन -चार चक्क्र लगाने लगा। बैल से मेहनत हो इतनी लेता ,पर उसके दाने -पानी का उचित प्रबंध बिलकुल नहीं करता। पर्निनाम यह हुआ कि कुछ दिनों में बैल की हडडी -पसली दिखाई देने लगी।
एक दिन चौथी खेप में शाहू ने दूना बोझ लादा। दिनभर थके जानवर के पैर न उठते थे ,परन्तु शाहू कोड़े बरसा -बरसा कर उसे दौड़ने लगा।
थोड़ी दूर जाकर बैल सुस्ताने के लिए रुकना चाहता था ,लकिन शाहू को जल्दी पहुंचने की चिंता थी अतएव उसने कई कोड़े बड़ी निर्दयता से बरसाये। बैल ने जी -जान से जोर लगाया ,पर अबकी बार शक्ति ने जवाब दे दिया। वह जमीन पर गिरा और ऐसा गिरा कि फिर नहीं उठा ही नहीं। वह मर चुका था।
घटना को हुए कई महीने बीत गए। अलगू जब अपने बैल का दाम मांगता ,तब शाहू जली -कटी सुनाने लगता। हारकर अलगू चौधरी को पचांयत बुलानी पड़ी। समझू शाहू को अलगू का वैर मालूम था ,इसलिए उसने जुम्मन को सरपंच चुना।
जुम्मन का नाम सुनते ही अलगू चौधरी का कलेजा धक -धक करने लगा ,किन्तु उसने दबे स्वर से कहा -"मुझे जुम्मन शेख के सरपंच बनने पर कोई उज्र नहीं है। "
सरपंच के आसन पर बैठते ही जुम्मन के मन में अपनी जिमेदारी का भाव पैदा हुआ। वह अलगू चौधरी से अपना पुराना वैर -भाव भूल गया। पंचो ने दोनों पक्षो से सवाल -जवाब करना शुरू किया। अलगू चौधरी और समझू शाहू ने अपनी -अपनी बाते बताई। सभी पंच इस बात पर एकमत थे कि समझू को बैल का मूल्ये देना चाहिए। साथ ही कुछ पंच पूरी कीमत दिलाने के अलावा समझू को दंड भी देना चाहते थे ; क्योकि उसने बैल को निर्दियता से मार दिया था। उनके अनुसार बैल की मृत्यु इस कारण हुई थी कि उससे बड़ा कठिन परिश्रम लिया गया और उसके दाने -चारे का अच्छा प्रबंध नहीं किया गया। अंत में जुम्मन ने फैसला सुनाया -" अलगू चौधरी और समझू शाहू ,पंचो ने तुम्हारे मामले पर अच्छी तरह विचार किया। समझू शाहू के लिए उचित है कि बैल का पूरा दाम चूका दे। जिस समय उन्होंने बैल खरीदा था ,उसे कोई बीमारी नहीं थी। अगर उसी समय अलगू पूरी कीमत लेकर ही बैल देता तो यह सवाल ही पचांयत के सामने नहीं उठाया जाता।
सरपंच का फैसला सुनकर अलगू चौधरी फुले न समाय। उपस्थित जनता भी जय -जयकार कर उठी -'पंच परमेश्वर की जय। '
थोड़ी देर बाद जुम्मन अलगू के पास आए और उसके गले लिपटकर बोले -" भैया , जब से तुमने मेरी पचांयत की ,तब से मै तुम्हारा शत्रु बन गया था ,परन्तु मुझे आज पता चला कि पंच के पद पर बैठकर न कोई किसी का मित्र रहता न शत्रु। न्याय के सिवाय उसे कुछ सूझता ही नहीं। अलगू भी खुशी से रोने लगा। इस पानी से दोनों दिलो का मैल थुल गया। दोनों उस दिन से फिर दोस्त बन गए। मित्रता की मुरझाई लता फिर से हरी हो गयी।
समझू शाहू गांव से अनाज ,गुड़ आदि लादकर मंडी ले जाता ,वहां से नमक ,तेल आदि लाता। नया और मजबूत बैल पाकर वह दिन में तीन -चार चक्क्र लगाने लगा। बैल से मेहनत हो इतनी लेता ,पर उसके दाने -पानी का उचित प्रबंध बिलकुल नहीं करता। पर्निनाम यह हुआ कि कुछ दिनों में बैल की हडडी -पसली दिखाई देने लगी।
एक दिन चौथी खेप में शाहू ने दूना बोझ लादा। दिनभर थके जानवर के पैर न उठते थे ,परन्तु शाहू कोड़े बरसा -बरसा कर उसे दौड़ने लगा।
थोड़ी दूर जाकर बैल सुस्ताने के लिए रुकना चाहता था ,लकिन शाहू को जल्दी पहुंचने की चिंता थी अतएव उसने कई कोड़े बड़ी निर्दयता से बरसाये। बैल ने जी -जान से जोर लगाया ,पर अबकी बार शक्ति ने जवाब दे दिया। वह जमीन पर गिरा और ऐसा गिरा कि फिर नहीं उठा ही नहीं। वह मर चुका था।
घटना को हुए कई महीने बीत गए। अलगू जब अपने बैल का दाम मांगता ,तब शाहू जली -कटी सुनाने लगता। हारकर अलगू चौधरी को पचांयत बुलानी पड़ी। समझू शाहू को अलगू का वैर मालूम था ,इसलिए उसने जुम्मन को सरपंच चुना।
जुम्मन का नाम सुनते ही अलगू चौधरी का कलेजा धक -धक करने लगा ,किन्तु उसने दबे स्वर से कहा -"मुझे जुम्मन शेख के सरपंच बनने पर कोई उज्र नहीं है। "
सरपंच के आसन पर बैठते ही जुम्मन के मन में अपनी जिमेदारी का भाव पैदा हुआ। वह अलगू चौधरी से अपना पुराना वैर -भाव भूल गया। पंचो ने दोनों पक्षो से सवाल -जवाब करना शुरू किया। अलगू चौधरी और समझू शाहू ने अपनी -अपनी बाते बताई। सभी पंच इस बात पर एकमत थे कि समझू को बैल का मूल्ये देना चाहिए। साथ ही कुछ पंच पूरी कीमत दिलाने के अलावा समझू को दंड भी देना चाहते थे ; क्योकि उसने बैल को निर्दियता से मार दिया था। उनके अनुसार बैल की मृत्यु इस कारण हुई थी कि उससे बड़ा कठिन परिश्रम लिया गया और उसके दाने -चारे का अच्छा प्रबंध नहीं किया गया। अंत में जुम्मन ने फैसला सुनाया -" अलगू चौधरी और समझू शाहू ,पंचो ने तुम्हारे मामले पर अच्छी तरह विचार किया। समझू शाहू के लिए उचित है कि बैल का पूरा दाम चूका दे। जिस समय उन्होंने बैल खरीदा था ,उसे कोई बीमारी नहीं थी। अगर उसी समय अलगू पूरी कीमत लेकर ही बैल देता तो यह सवाल ही पचांयत के सामने नहीं उठाया जाता।
सरपंच का फैसला सुनकर अलगू चौधरी फुले न समाय। उपस्थित जनता भी जय -जयकार कर उठी -'पंच परमेश्वर की जय। '
थोड़ी देर बाद जुम्मन अलगू के पास आए और उसके गले लिपटकर बोले -" भैया , जब से तुमने मेरी पचांयत की ,तब से मै तुम्हारा शत्रु बन गया था ,परन्तु मुझे आज पता चला कि पंच के पद पर बैठकर न कोई किसी का मित्र रहता न शत्रु। न्याय के सिवाय उसे कुछ सूझता ही नहीं। अलगू भी खुशी से रोने लगा। इस पानी से दोनों दिलो का मैल थुल गया। दोनों उस दिन से फिर दोस्त बन गए। मित्रता की मुरझाई लता फिर से हरी हो गयी।
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