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Showing posts from December, 2018

Kam se nam

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हम सभी बड़ा व प्रसिद्ध व्यक्ति बनना चाहते है किंतु इसके लिए मार्ग का चुनाव कैसे करे ? इसी बात पर प्रकाश डाला गया है।  रमेश  जब भी किसी प्रसिद्ध अभिनेता ,खिलाडी ,वैज्ञानिक अथवा कलाकार को पुरस्कार या सम्मान पाते देखता तो उसका मन भी ललचा उठता। काश !कभी वह भी इतना बड़ा आदमी बन सके। वह अनेक कल्पनाओ में खोया रहता। कभी -कभी उसे लगता कि उसने कुछ ऐसी नई खोज की है कि चारो ओर उसके नाम की धूम मच गई है। इसी प्रकार के अनेक सपनो में वह लीन रहता।                                                                                               शिल्पा दीदी बहुत दिनों से यह सब देख रही थी कि रमेश किताबो आगे रखकर कुछ सोचता रहता है। एक दिन उन्होंने उससे पूछ लिया --" रमेश , क्या सोच रहे हो,,,,,,?"        रमेश >> कुछ नहीं दीदी।  शिल्पा>> नहीं ,मुझसे कुछ छिपाओ नहीं ,शायद कोई समाधान मिल जाए।  रमेश>> दीदी,मै कुछ ऐसा करना चाहता हूँ कि मेरे नाम की धूम मच जाए। न्यूटन ,सचिन तेंदुलकर ,अमिताभ बच्चन या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी तरह ही चारो ओर मेरा यश फैल जाए। ...... 

Mhapursho ki bate

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प्रत्येक मनुष्य के जीवन में अनेक घटनाएँ घटती है किंतु कुछ घटनाएँ हमे प्रेरणा प्रदान करती है। यहाँ ऐसी ही प्रेरक घटनाओ की कहानी है - (1 ) मितव्ययिता  महात्मा गाँधी प्रतिदिन हर एक प्रकार के व्यय का हिसाब -किताब रखते थे। वे खर्च नपा -तुला करते थे ,यानी मितव्ययी थे। हिसाब -किताब में बस -यात्रा तथा डाक टिकट का खर्चा भी लिखते थे और सोने से पहले रोकड़ मिला लेते थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा -"मेरी वह आदत अंत तक कायम रही। मै समझता हूँ कि इसी कारण सार्वजिनक जीवन में मेरे हाथो से लाखो रुपयों का उलट -फेर होने पर भी मै मुनासिब बचत कर सका। मेरी देख -रेख में जितने आंदोलन चले है ,उनमे कभी मैंने कर्ज नहीं किया ,बल्कि एक में जमा किया और कुछ -न -कुछ बचाता ही रहा हूँ। "        गाँधी जी ने युवको को सीख देते हुए कहा -" यदि मिलने वाले थोड़े रुपयों का भी हिसाब -किताब सावधानी से रखे ,तो उसका लाभ जैसे मुझे और भविष्य में जनता को मिला ,वैसा उन्हें भी मिलेगा। " (2 ) सादगी और संयम  भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ ० राजेंद्र प्रसाद सदगीप्रिय और मितव्ययी व्यक्ति थे। वे महान स्वत्रं

schcha hira

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प्राय सभी को अपनी संतान अच्छी लगती है ,किंतु वास्तव में प्रशसनीय कौन है ?आइए जाने ,इस कहानी को पढ़कर - चार सहेलियाँ थी -माधुरी ,विजया ,कुंती और सरला। एक ही गांव में रहती थी। खेत -खलिहान ,पानी -पनघट कहीं -न -कहीं मिल ही जाती और जितना समय मिलता बाते करती रहती।                                                                                 एक शाम की बात है। चारो सहेलियाँ अपने -अपने घड़े लेकर कुँए पर पहुंची ,कुँए की पक्की जगत पर ही बैठकर आपस में इधर -उधर की बातचीत करने लगी। करते -करते बात बेटो पर जा पहुंची।                                                            माधुरी कहने लगी -" भगवान सब को मेरे जैसा ही बेटा दे। मेरा बेटा लाखो में एक है। वह बहुत अच्छा गाता है। उसके गीत को सुनकर कोयल और मैना भी चुप हो जाती है। लोग बड़े चाव से उसका गीत सुनते है। सच में मेरा बेटा तो अनमोल हीरा है। "                                                                                            यह सुनकर विजया ने कहा -"बहन ,मै तो समझती हूँ कि मेरे बेटे की बराबरी कोई नहीं कर सकता।

acha insan ke gun

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किसी के किए उपकार को याद रखना एक इंसानियत कहलाती है। यह एक ऐसा गुण जो मनुष्य की शोभा बढ़ाता है। प्रस्तुत है इसी पर आधारित यह कहानी।  मेवाड़ के महाराजा अपने एक सेवक को हर समय अपने पास रखते थे -चाहे युद्ध का मैदान हो ,चाहे मंदिर। एक बार वे शिव के दर्शन करने गए तो उस सेवक को भी अपने साथ ले गए। दर्शन करने के बाद वे तालाब के किनारे टहलने गए। उन्हें एक वृक्ष पर ढेर सारे फल लगे हुए दिखाई दिए।     उन्होंने एक फल लिया और उसकी चार फाँक की। एक फाँक सेवक को देते हुए उन्होंने पूछा -"बताओ ,कैसा स्वाद है ?" सेवक ने फल खाया और कहा -"मीठा बहुत है। किंतु महाराज ,एक और दीजिए। " महाराज ने एक फाँक और दे दी। उसने कहा -"किया स्वाद है ! आनद आ गया। कृपया एक और दीजिए। "                                                        महाराज ने तीसरी फाँक भी दे दी। उसे खाते ही वह सेवक बोला -"बिल्कुल अमर फल है। वह भी दे दीजिए। "और उसने अंतिम फाँक भी माँग ली। महाराज को क्रोध आ गया। उन्होंने कहा -"तुम्हे शर्म नहीं आती ! तुम्हे सब कुछ पहले मिलता है ,तब भी तुम इतनी हिम्मत कर रहे

Guru nanak aur mrdana

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गुरु नानक देव सिक्ख धर्म के प्रसिद्ध गुरु है। उनके जीवन का एक प्रेरणादायी प्रसंग यहाँ दिया जा रहा है।  एक बार गुरु नानक और अपने पिरय शिष्य मर्दाना के साथ यात्रा पर निकले। शहर तथा जंगल को पार करके वे एक गांव में पहुंचे। उस गांव के लोग बहुत दुष्ट व अत्याचारी थे। वे न तो किसी का आदर -सत्कार ही करते थे और न ही किसी की अच्छी बातो को मानते थे।                                                                                                                 उस गांव के लोगो ने गुरु नानक व उनके शिष्य को देखा ,किंतु उन्होंने उनको न तो भोजन दिया और न पानी। यहाँ तक कि उन्हें किसी व्यक्ति ने ठहरने के लिए आश्रय भी नहीं दिया।                                                                                            गांव छोड़ते समय गुरु नानक ने कहा -" हे ईश्वर यह गांव इसी तरह बना रहे और यहाँ के लोग भी यही रहे। " गुरु नानक देव के ये शब्द सुनकर मर्दाना को बड़ा आश्चर्य हुआ ,लेकिन उसने कुछ नहीं कहा। वे उस गांव से थोड़ा आगे चले। आगे चलकर उन्हें एक दूसरा गांव मिला। गांव में पहुंचकर उन्होंने देखा कि

bhart ke sanskar

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अपने बच्चो को दे अच्छे संस्कार।  भारत महान था ,सोने की चिड़िया कहलाता था। इसलिए नहीं कि उसकी सीमाएँ विस्तृत थी ,अपितु इसलिए कि यहाँ का हर व्यक्ति सुसंस्कृत था। जो भी कर्म हम करते है ,वह हमारे संस्कारो से प्रेरित होकर किया जाता है। हम वैसा ही कर्म करेगें ,जैसे हमारे संस्कार होंगे। ये संस्कार हमारे आज के क्रिया -कलापो के दादा -दादी ,नाना -नानी ,माता -पिता तथा पूर्व जन्मो से संचित होते है। इनको अच्छा बनाने का काम माता -पिता से ही प्रारंभ होता है। बच्चो को कैसे बनाना है -वह माता -पिता ,गुरुजनो के हाथ में है। हमारे जीवन से दोषो को निकालने के लिए ,गुणों को लाने के लिए और जो भी कमी है उसको पूर्ण करने के लिए संस्कारो की अपेक्षा होती है।                                         बच्चो के शरीर को ,उनके चरित्र को ,उनकी विद्या को ,उनकी बुद्धि को और जीवन -प्रणाली को संवारने के लिए जो क्रिया -कलाप किए जाते है -उनको संस्कार कहते है। बालको को शिक्षित करने के लिए जहाँ एक और विषय की जानकारी देनी आवश्यक है ,वही दूसरी और उन्हें सुसंस्कारित करना ,नैतिक शिक्षा देना ,जीवन का व्यवहारिक पक्ष उजागर कर

Pryavrn surksha

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पृथ्वी पर इंसानो की जनसंख्या और तकनीकी विकास के अंत्यत तेजी से बढ़ने के कारण पर्यावरण को अत्यंत हानि पहुंची है। विश्व के सभी लोग इससे भली -भॉंति परिचित है। आप पर्यावरण के प्रति कितने सजग है ?    1  >>> पृथ्वी की सतह से 6 और 30 मील की ऊंचाई पर एक सुरक्षित परत उपस्थित  है ,जो हमे सूर्य की अत्यंत                 घातक पराबैगनी किरणों से बचाती है। इन किरणों से त्वचा जल सकती है और इससे त्वचा का कैंसर                   भी हो सकता है। इस परत का क्या नाम है ?                         (  ओजोन परत  )  2 >>>> सन 1946 में किस देश में झरनो का सबसे बड़ा संग्रह था , 'वाइल्डफाल ट्रस्ट ' जो करीब धरती पर 400                एकड़ में फैला है ?                         ( यू ० के ० ) 3 >>>>> सुंदरलाल बहुगुणा द्वारा भारत में गढ़वाल में अंतराष्टीय पर्यावरण बचाओ आंदोलन शुरू किया गया था                ,जिसे अंतराष्ट्रीय स्तर पर बहुत प्रशंसा मिली थी। इस आंदोलन के अंतर्गत लोग पेड़ो  की  रक्षा करते है                 और उन्हें काटने नहीं देते।             

atithi devo bhv

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                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                    एक समय एक गांव में रामू नाम का एक किसान रहता था। रामू का एक छोटा -सा सुखी परिवार था। सभी में आपस में बहुत प्यार थाऔर सभी एक -दूसरे के साथ मिल -जुलकर ,एक -दूसरे की मदद करते हुए अपना जीवन व्यतीत करते थे। रामू के घर में उसकी समझदार पत्नी कमला ,उसका मेहनती पुत्र श्याम और उसकी सुंदर ,सुशील पुत्रवधु राधा रहते थे। चारो ही बहुत संतोषी स्

vidhya aur budhi

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इस कहानी में हमे यह शिक्षा मिलेगी कि केवल किताबी ज्ञान ही नहीं होना चाहिए बल्कि उसके साथ -साथ बुद्धिमान भी होना चाहिए।  एक गांव में चार हम उम्र के लड़के रहते थे ,केशव ,माधव ,हरि और गोपाल। चारो साथ -साथ खेलते ,खाते और साथ -साथ पढ़ते। चारो में आपस में बहुत प्रेम था। चारो लड़के पढ़ने में बहुत होशियार थे।        धीरे -धीरे चारो लड़के बड़े होने लगे। पढ़ाई के प्रति उनका लगाव देखकर चारो के माता -पिता ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए काशी भेजने का निर्णय लिया।                  चारो लड़के काशी जाकर अपनी -अपनी इच्छा के अनुसार विषय चुनकर ,उन विषयो की खूब मन लगाकर पढ़ाई करने लगे। केशव ने व्याकरण विषय चुना तो माधव ने ज्योत्षी। हरि को लोगो का इलाज करने का बहुत शोक था ,इसीलिए उसने वैधक और हमेशा चारो दोस्तों के बीच किसी बात को लेकर हुए विवाद को सुलझाने वाले गोपाल ने न्याय विषय चुना। कई वर्ष बाद खूब पढ़ लिखकर जब चारो अपने -अपने विषय के पूर्ण ज्ञाता बन गए तब वह वापस अपने गांव की ओर चल दिए।                                 चलते -चलते मार्ग में एक नगर पड़ा। दोपहर का समय था। एक धुप बहुत तेज थी फिर चलते -चलते च

lalch ka fl

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इस कहानी से हमने यह बताने की चेस्टा की है कि लालच नहीं करना चाहिए जितना मिल रहा है उतनमे में ही सब्र करना चाहिए। क्योकि लालच का फल बहुत बुरा होता है।  बहुत समय पहले एक गांव में एक किसान अपने परिवार के साथ र हता था। किसान के परिवार में उसकी पत्नी ,दो बच्चे तथा वृद्ध माता -पिता थे। किसान बहुत गरीब था। परंतु वह काम से कभी जी नहीं चुराता था। वह बहुत महेनती था। सारा दिन कड़ी महेनत करके बड़ी मुश्किल से अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर पाता था।            किसान बहुत मेहनती होने के साथ -साथ भगवान में भी विशवास रखता था। सारा दिन कठोर परिश्रम करने के बाद जो समय मिलता। उसमे वह भगवान की आराधना करता था। एक दिन ,दिनभर का काम करने के बाद वह अपने आराध्य -देव भगवान शंकर का नाम ले रहा था ,तभी भगवान शंकर उसकी प्राथना से प्रसन्न होकर उसके सामने प्रकट हुए। भगवान शंकर को अपने सामने प्रकट देखकर गरीब किसान बहुत आचार्यचकित हुआ।                         किसान की मन इस्तिति को समझते हुए भगवान शंकर बोले ," आचार्यचकित मत हो गरीब किसान। मै तुम्हारी प्राथना से प्रसन्न हूँ। तुम जो चाहो मु

aaram hram hai

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विशेष>> > इस कहानी से हमे यह सिख मिलती है कि हमे जीवन में सदैव महेनती होना चाहिए। कभी आलस नहीं करना चाहिए क्योकि "आराम हराम है। " बहुत समय पहले एक गांव में एक बहुत धनवान किसान था। किसान को उसके पुरखो से बहुत -से धन सम्पति मिली थी। किसान स्वयं भी बहुत मेहनती था। उसने पुरखो से मिली सम्पति को अपनी मेहनत से चार गुना कर लिया था।                  किसान के पास बहुत से खेत -खलियान थे ,बहुत -से -बैल थे। एक बड़ी -सी हवेली थी जिसमे बहुत से नौकर -चाकर थे। धीरे -धीरे किसान बूढ़ा हो गया और एक दिन उसकी मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु के बाद उसकी जमीन जायदाद उसके एकलौते पुत्र किशन को मिल गयी।                               किशन अपने पिताजी से बिलकुल विपरीत स्वभाव का था। जहाँ उसके पिताजी के लिए 'आराम हराम था ' वही किशन के लिए 'काम हराम था 'अर्थात वह बहुत आलसी था। वह कभी भूले से भी खेत -खलियानो पर नहीं जाता था और ना ही पशुओ की देखभाल करता था।                                              उसने अपने सारे काम अपने नौकरों पर छोड़ रखे थे। बूढ़े किसान की मृत्यु के बाद शुरू

angulimal

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विशेष -- महान लोगो की संगत बुरे से बुरे आदमी को भी  सुधार सकती है। प्रस्तुत कहानी में यही संदेश दिया गया है।  संसार में समय -समय पर सचाई और धर्म फैलाने के लिए महात्माओ को बराबर फिरते रहना पड़ा है। जिस प्रकार हमारे बापू गाँधी जी को गांव -गांव फिरना पड़ा ,उसी तरह महात्मा बुद्ध को भी करीब 45 वर्ष तक लगातार दुनिया की भलाई के लिए एक स्थान से दूसरे  स्थान पर बराबर आना -जाना पड़ा।                 एक बार वे बिबासर की राजधानी राजगृह से चलकर कौशल पहुंचे। कौशल तब अवध को कहते थे। अयोध्या के आस -पास के राज्यों की राजधानी श्रावस्ती  थी। वहाँ आजकल सहठ -महठ नाम का गांव खड़ा है।  वहाँ का राजा प्रेसनजीत था। राजा महात्मा बुद्ध का शिष्य था और इसीलिए बुद्ध उसको अपने उपदेश सुनाने अक्सर जाया करते थे। एक बार वे श्रावस्ती पहुंचे तो राजा को उन्होंने बड़ा व्याकुल पाया। पूछने पर राजा ने बताया ," मेँ दो कारणों से बड़ा दुःखी हूँ। एक तो मेरा बेटा बिड़भ बड़ा नालायक है। दूसरे अंगुलिमाल नाम का डाकू प्रजा को बहुत तंग करता है ; तकलीफ देता है जो मेँ सहन नहीं कर सकता ! कया करू ?"