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Showing posts from January, 2019

Khel ke fayde

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खेल से हमारी मानसिक इस्थिति ठीक रहती है। बच्चो के साथ -साथ आम आदमी को भी समय निकलकर कोई भी खेल खेलना चाहिए।   खेल हमारे जीवन में बहुत ही जरूरी है। खेल से शरीर में कभी कोई भी परेशानी नहीं होती। खेल से हमारे शरीर की हर एक नस काम करती है। खेल से हम हर एक टेंसन से मुक्त हो जाते है ,जब की तक की हम खेलते है। खेल से शरीर की फिटंश रहती है। खेल भी कई प्रकार के होते है ,जैसे -हॉकी ,क्रिकेट ,फ़ुटबॉल ,लूडो ,टेनिस ,कुस्ती ,साईकिल रेसिंग ,संतरज ,कैरम आदि है। हर खेल का अपना महत्व होता है। हर खेल से हमारी शरीर की फिटनिस अलग तरह से होती है। आज कल सबसे ज्यादा खेल क्रिकेट पसंद है। क्रिकेट का जन्म इग्लेंड में हुआ था। क्रिकेट में बारह खिलाडी होते है। तीन एपायर होते है। जिन्हे हम आम भाषा में बोले तो निर्णय देने वाले लोग की कौन सही खेल रहा है ,और कौन गलत खेल रहा है। खेल -खेल में अक्सर आपस में दोनों टीमों की खिलाड़ियों का झगड़ा हो जाता है ,तो इसलिए ही एपायर होते है। जिनके निर्णय मान्य माना जाता है। खेल में अक्सर एक टीम को तो हारना ही होता है। क्रिकेट में एक बड़ा मैदान की जरूरत होती है। जिससे की खिला

Bhart ko aajad krne ke liye kdi mhnt kri in mhapursho ne

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आज हम उन महापुरषो को भूलते जा रहे है जिनकी वजह से आज हम आजादी का आनंद ले रहे है। हम सब एक बार फिर उनको याद कर लेते है।  1857 के विद्रोह के बाद ,भारत के लोगो ने महसूस किया कि भारतीय समाज में अनेक सामाजिक कुरीतियाँ ,जैसे --जाति प्रथा ,सती प्रथा ,बाल विवाह तथा बालिका शिशु हत्या ऐसी कुरीतियाँ थी ,जो समाज का नाश कर रही थी तथा इसे पिछड़ा बना रही थी। ये भारत तथा इसकी जनता की बुरी दशा का कारण थी।           कुछ शिक्षित भारतीयों ,जैसे --राजा राममोहन राय ,ईश्वर चंद्र विद्यासागर ,सर सैय्यद अहमद खां ,नारायण गुरु आदि ने अनुभव किया कि विधवाओं तथा स्त्रियों के उत्थान के लिए इन पुरानी धारणाओं तथा अंधविश्वासों को समाप्त करना आवश्यक है। उन्होंने अनुभव किया कि समाज में इन परिवर्तनों के बिना भारत एकजुट होने तथा अंग्रेजो से लड़ने में सक्षम नहीं हो सकता।                                          यह कार्य लोगो को शिक्षित करके किया जा सकता था। अनेक समाज -सुधारको ने इन कुरीतियों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। वे एक आधुनिक समाज का निर्माण करना चाहते थे। उन्होंने अपनी एक पार्टी बनाई। उन्होंने अंग्रेज शासको का ध्य

Vrksho ka mhttv

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वृक्ष हमारे किये अत्यंत  उपयोगी है। कवि ने वृक्षों के महत्त्व का बड़ा ही सुंदर वर्णन किया है।  संध्या हो या दिवस सवेरा , ऑक्सीजन बिखराते पेड़।  पर पीड़ा हर सुख दे करके  अपना सर्वस्व लुटाते पेड़।  अगर पेड़ है तो छाया है , अगर है तो हरियाली।  कोयल ,कौआ ,तोता ,मैना , सबका घर वृक्षों की डाली।  "मानव क्यों बेदर्द बना तू ", अपना राग सुनाते पेड़।  अंगविहीन होने पर भी , अश्रु नहीं बहाते पेड़।  पत्थर मारो फल देते है , सदा फूलते -फलते है।  सदा -साधुओ की विधि तरुवर , जीवन धन दे चलते है।  खंजन ,बुलबुल ,बया ,फाख्ता , दिल में इन्हे बसाते पेड़।  ईंधन ,चारा फल -फूल ,ओषधि , दे करके मिट जाते पेड़।  इन्हे देखकर बादल आते , धरती की प्यास बुझाते है।  धूल ,धुए को दूर भगाकर , पर्यावरण को शुद्ध बनाते है।  हरियाली की वुंदावली सी , धरती पर ये लाते पेड़।  रोग विनाशक ,शोक निवारक , सबको सुख पहुंचते पेड़। 

Jgdish chndr bsu ka jivn prichy

 भारत के महान वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु ने अपनी वैज्ञानिक खोजो से समस्त विश्व का कल्याण किया है।  जगदीश चंद्र बसु भारत के महान वैज्ञानिक थे। उन्होंने जो वैज्ञानिक खोजे की थी ,उनके लिए सारा संसार उनका रर्णी रहेगा। उनका जन्म 30 नवंबर ,1858 ई ०  को ढाका के गांव विक्रमपुर में हुआ था। उनके पिता श्री भगवान चंद्र बसु डिप्टी कलक्टर थे। जगदीश चंद्र की आरंभिक शिक्षा गांव की पाठशाला में हुई। इसके बाद वे कलकत्ता के सेंट जेवियर कॉलेज में प्रविष्ट हुए। यहाँ से उन्होंने बी0ए0 की परीक्षा पास की। उन्होंने जगदीश चंद्र आई0 सी0 एस0 की परीक्षा पास करना चाहते थे। लेकिन उनके पिता इस पक्ष में नहीं थे। उन्होंने ,"जगदीश ! तुम दुसरो पर शासन करने की बात मत सोचो। तुम्हे विद्वान् बनकर संसार को कुछ देना चाहिए। "                             पिता की बात सुनकर जगदीश चंद्र डॉक्टरी पढ़ने के लिए लंदन चले गए। वहाँ स्वास्थ्य ने उनका साथ न दिया। वे बीमार पड़ गए। डाक्टरों ने उन्हें जलवायु बदलने का परामर्श दिया। वे कैंब्रिज चले गए। वहाँ उन्होंने डॉक्टरी की बजाय विज्ञान की उपाधि प्राप्त की। अब वे स्वदेश लौटे। यहा

Purskar

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परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हो ,किसी भी स्तितित में हमे सच्चाई और ईमानदार का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। इस कहानी में यही एक किस्सा लिख रहे है।  ( दृश्य --घर के एक कमरे में चारपाई के ऊपर राम की बीमार माँ लेटी हुई है। ) माँ >बेटा राम !तुम्हारे स्कूल जाने का समय हो गया है। अब तुम जाने की तैयारी करो। तुम्हारी परीक्षाए भी पास आ गयी है।  राम >नहीं माँ ,मै आपको इस दशा में छोड़कर नहीं जाऊंगा। मुझे आपकी दवा भी तो लानी है।  माँ >दवा ! कहाँ से लाएगा ? दवा क्या बिना पैसों के आ जाती है ?थोड़ा बुखार है, उतर जाएगा। तू अपनी पढ़ाई मत छोड़ ,पर तूने तो कल कुछ नहीं खाया। भूखे पेट क्या पढ़ाई होगी ?जा महेश की दुकान से बिस्कुट ले आ।  राम >>मै नहीं जाऊंगा महेश के पास। वह पिछले उधार के पैसे मांगेगा। आप मेरी चिंता मत करो। मै स्कूल में कुछ न कुछ खा लूंगा।  माँ >>स्कूल में कहाँ से खा लेगा ? राम >>मेरे कई मित्र है। वे मुझे बिना खिलाए नहीं मानते है। पर आपकी दवा. .........  माँ >>मेरी दवा की चिंता छोड़। कल तक मै ठीक हो जाउंगी। काम पर जाना शुरू कर दूंगी ,फिर सब ठीक हो जाएगा। 

Raja vikramaditya ki khani

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भारत -भूमि पर अनेक महापुरषो ने जन्म लिया है। राजा विक्रमादित्य ऐसे ही एक महापुरुष थे।  राजा विक्रमादित्य न्याय के लिए प्रसिद्ध थे। वे भारत के उन सम्राटो में गिने जाते है ,जिनकी न्यायप्रियता की कहानियाँ आज भी सुनाई जाती है। उन्ही के समय से विक्रमी संवत चला आ रहा है। वे अपनी प्रजा की भलाई के लिए सदा प्रयत्नशील रहते थे। रात के समय वेष बदलकर वे नगर में घुमा करते थे। इसलिए कि वे स्वयं जाकर देख सके कि कोई दुखी तो नहीं है।       एक दिन सम्राट घूमने निकले। रात आधी से अधिक बीत चुकी थी। सम्राट साधारण वस्त्र में घोड़े पर सवार होकर चल पड़े। साथ में मंत्री थे। चांदनी रात थी। प्रजा सुख की नींद सो रही थी। सम्राट घूमते -घमते नगर से बाहर निकल गए। घोड़े से उतरकर टहलने लगे। मंत्री कुछ रह गए। घोडा साथ वाले खेत में चला गया। खेत में ईख लहलहा रही थी। अचानक शब्द हुआ ,"कौन है ?" इतने में एक किसान सामने आ खड़ा हुआ। वह रात के इस पिछले पहर में सम्राट को पहचान नहीं सका। कहने लगा ,"तुम कौन हो ? क्या यह घोडा तुम्हारा है ?इसने मेरे सात पेड़ रोद डालें है। क्या तुम जानते हो ,सम्राट विक्रमादित्य के र

Pnna dhaay ki khani

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पन्ना धाय के बलिदान की कहानी इतिहास में अमर है। इस कहानी में हम एक किस्सा उनका लिख रहे है।  चित्तोड़ के महाराणा सांगा स्वर्ग सिधार चुके थे। उस समय उनके पुत्र उदयसिंग की अवस्था छह वर्ष ही थी। इसलिए शासन की बागडोर उदयसिंग के युवा होने तक उसके चचरे भाई बनवीर के हाथो में सोप दी गयी। बनवीर बहुत ही गुस्से वाला और अत्याचारी था।       राज्य मिलने पर उसके मन में लालच आ गया। उसने सोचा कि मै तभी तक राजा हूँ ,जब तक उदयसिंह बड़ा नहीं होता। इसलिए वह उदयसिंह को अपने रास्ते से हटाकर स्वयं राजसिंहासन हथियाने के उपाय सोचने लगा। कुंवर उदयसिंह का पालन -पोषण पन्ना धाय कर रही थी। वह बहुत स्वमीभगत थी। उसे बनवीर की चाल का पता था। एक रात पन्ना धाय राजकुमार और अपने बेटे चंदन को सुला रही थी। उसे पता चला कि बनवीर उदयसिंह का वध करने के लिए आने वाला है। उसने अपने बेटे को चंदन को उदयसिंह के बिस्तर पर सुला दिया और उदयसिंह को पत्तलो के टोकरे में छिपाकर सेवक कीरतबारी के द्वारा सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने का निश्च्य किया। पन्ना ने कीरतबारी से कहा ,"तुम टोकरा लेकर नदी किनारे पहुँचो ,मै शीघ्र वहाँ आउंगी। मेरी

Republic day

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पहले महापुर्षो की  बाते  जानकर आप में भी देश के प्रति जोश पैदा हो जायेगा।  हमारे देश के महापुरुष और स्वंत्रता सेनानी के ऐसे नारे जो आपको जोश से भर देंगे और इस बात का एहसास करायेंगे ,कि उन्हें की मेहनत है जो आज हम इस लोकतांत्रित देश में आजादी जी पा रहे है।        भारत हम जब भी आजादी की बात करते है सबसे पहले हमारे मन में उन महापुरषो का नाम सबसे पहले  आता है ,जिनके एक नारे ने देश की आजादी की लड़ाई में क्रांति ला दी ,या फिर यूं कहे कि उनके विचार और उनकी जिद ही थी जो आज हम सभी आजादी से अपनी जिंदगी जी पा रहे है। अगर हमारे देश में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ,महात्मा गाँधी और चंद्रशेखर आजाद जैसे  महापुरषो और स्वंत्रता सेनानी न होते तो शायद ही हम इस स्वंत्रता राष्ट्र में साँस ले सकते ,तो चलिए रिपब्लिक डे पर हम आपके लिए लेकर आये है। हमारे देश के महापुरुष और स्वंत्रता सेनानी के ऐसे नारे जो आपको जोश से भर देंगे और इस बात का एहसास करायेंगे ,कि यह उन्ही की मेहनत और लगन है जो आज हम इस लोकतांत्रिक  देश में आजदी से जी पा रहे है।           जय हिंद : नेताजी सुभाष चंद्र बोस -देश भगती का प्रतीक

Krmyogi Balk

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जो लोग अपने कार्य में विश्वास रखते है ,उन्हें सफलता के लिए किसी की सहायता नहीं होती। इस कहानी में यही बताया गया है।  एक बालक मन लगाकर पढ़ता था। उसकी बुद्धि थी और वह मेहनत भी करता था। इसलिए वह अपनी कक्षा में हमेशा प्रथम आता था। उसकी मेहनत देखकर विद्या की देवी सरस्वती खुश हुई। वह एक दिन बालक के पास आकर खड़ी हो गई। बालक दीए के प्रकाश में पढ़ रहा था। उसने इधर -उधर आँख उठाकर भी नहीं देखा। बालक की एकाग्रता पर देवी को बड़ा आश्चर्य हुआ। देवी बोली --बालक !देखो तो ,तेरे सामने कौन है ?विधार्थी ने आंखे उठाई। सामने खड़ी ममतामयी महिला को उसने देखा ,प्रणाम किया और पुनः पढ़ने में लग गया। देवी बालक की तल्लीनता देखकर मुग्ध हो गयी। वह उसके साथ बात करना चाहती थी।                 उसने पूछा --"वत्स !तेरे सामने कौन है ,तू जानता है ?" बालक खड़ा हुआ और नरम भाव से बोला --"माँ !मै नहीं जानता। "देवी ने कहा ---"वत्स ! मै विद्या की देवी सरस्वती हूँ। तेरी मेहनत देखकर मै खुश हूँ। मै तुझे कुछ देना चाहती हूँ। बोल ,क्या लेगा ?" बालक बोला --"माँ ! आपने बड़ी कृपा की। मुझे दर्शन दिए।

Ishvr bhgt

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ईश्वर भगत रैदास ने अपने सच्चे मन से भगती की थी। ईश्वर की भक्ति के लिए ऊपरी दिखावा जरूरी नहीं है। इस कहानी में हमने यही बताने की कोशिश की है।  बहुत समय पहले रैदास नाम के एक भगत हुए थे। रैदास जाति से मोची थे तथा जूते बनाकर अपने परिवार का पालन -पोषण किया करते थे। रैदास की ईश्वर में असीम -श्रद्धा थी। वे अधिकतर साधु -संतो की सेवा करते और उनके सतसंग में रहते थे।             एक दिन की बात है कि एक भगत ने ,जो रैदास के सामने से होकर प्रतिदिन गंगा -नहाने के लिए जाया करता था ,रैदास से कहा -"रैदास ! चलो गंगा -नहाने के लिए चले। '' रैदास ने भगत की तरफ देखा और कहा -मेरी तरफ से पैसा लो और इसका प्रसाद गंगाजी में चढ़ा देना ,लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि गंगा मैया हाथ फैलाकर ले तो देना ,नहीं तो मत देना।                  भगत ने कहा --कही ऐसा भी होता है ,जैसा तुम कह रहे हो। रैदास ने पुनः कहा --जैसा मैंने कहा ,वैसा ही करना। भगत ने जाकर गंगा में नहाया ,अपना फूल -प्रसाद चढ़ाया और गंगाजी में घुसकर कहा --गंगा मैया ,यह प्रसाद रैदास भगत का है ,अपना हाथ फैलाकर ग्रहण करो। उसी समय आकशवाणी हुई -

Schi bhgti kro

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सच्ची भगती मन से करनी चाहिए। आपका मन अच्छा होना चाहिए। इस सच्ची भगती का इतिहास भी गवहा है।  आज से कई वर्षो पहले भारत में महाभारत हुई थी। तब द्रोपती ने श्री कृष्ण की भगती की थी। जब द्रोपती का चीर हरण हुआ था तब द्रोपती ने अपने मन -ही -मन भगवान श्री कृष्ण को याद किया था और तुरंत श्री कृष्ण ने द्रोपती की पुकार सुनी और द्रोपती जी की बीच सभा में इज्जत बचाई। जबकि पूरी सभा लगी हुई थी ,उनमे से कोई भी नहीं बोल पा रहा था। श्री कृष्ण भगवान सिर्फ द्रोपती जी को ही दिखाई दे रहे थे। पूरी सभा को श्री कृष्ण भगवान नहीं दिख रहे थे। सब लोग आश्चर्यचकित हो गए थे क्योकि द्रोपती जी की साड़ी इतनी लम्बी हो गयी थी कि दुशासन भी थक गया था साड़ी उतारते उतारते लेकिन द्रोपती जी अपने मन में अपने भगवान श्री कृष्ण को याद कर रही थी,और भगवान श्री कृष्ण अपनी शक्ति से द्रोपती की साड़ी बढाए जा रहे थे। इस तरह द्रोपती जी ने श्री कृष्ण भगवान की पूजा की और उनकी पूरा विशवास था अपने भगवान पर आज भी भारत के अंदर इस बात की चर्चा होती है। श्री कृष्ण भगवान ने सही समय पर आकर अपने भगत की रक्षा की।             उसके बाद नंबर आ

Ekta me shkti hoti hai .

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एकता में शक्ति होती है यही हमने इस कहानी में बताने की कोशिश की है।  एक गांव में एक गरीब किसान रहता था। किसान बहुत ही ईमानदार था और मेहनती भी था। किसान के चार लड़के थे और चारो के चारो बहुत निकम्मे थे। वे चारो काम -धाम तो करते नहीं थे बल्कि आपस में झगड़ा करते रहते थे। उनकी इसी आदत से बूढ़ा किसान बहुत -ही दुःखी था ,वह उनको बहुत समझता था लेकिन उनकी समझ में कुछ भी नहीं आता था। एक दिन बूढ़ा किसान बहुत ही बीमार हो गया। किसान ने सोचा की उसका अंतिम दिन आ चूका है ,उसने अपने चारो पुत्रो को अपने पास बुलाया और कहा की आप एक -एक डण्डा लाओ मेरे पास जब चारो लड़के अपने बूढ़े बाप के पास आये तो बोले बोलो पिताजी इन डंडो का किया करना है। अब बूढ़े किसान ने पहले अपने बड़े पुत्र से कहा अपने इस डंडे को तोड़ दो। उसके बड़े लड़के ने एकदम झट से डंडा तोड़ दिया। अब दूसरे लड़के से भी उसके बूढ़े पिता ने अपने डंडे को तोड़ने को कहा उसने भी डंडा तोड़ दिया। अब सभी से उस बूढ़े पिता ने यही कहा डंडा तोड़ने को और सभी ने तोड़ दिया। अब उनके पिता ने कहा चारो डंडो को एक साथ एक ही लड़का तोड़ेगा। सबसे पहले सबसे बड़े पुत्र से कहा की इन चारो डं

Maa baap ki seva hi asli dhrm hai

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माँ बाप की सेवा ही असली सेवा है। सारे तीर्थ एक और माँ बाप के सेवा एक और है। श्रवण कुमार कितने महान थे ,जिन्होंने अपने माँ बाप की सेवा की।  अगर हमे जीवन ही नहीं मिलता तो हम कैसे देख पाते इस दुनिया के रंग को। हम सभी जब छोटे होते है ,तो माँ बाप को बहुत परेशान करते है ,लेकिन जब हम बड़े होते है तो उनकी बाते हमे बुरी लगती है। ऐसा क्यों है इस संसार में जब कि ये तो हम सभी को पता है की एक दिन हमे भी किसी के माँ बाप बनना है। अरे भाई सबसे बड़े भगवान तो हमारे माँ बाप है। तो क्यों ना हम उनकी इच्छा पूरी करे। उनकी इच्छा भी बस हमारी ख़ुशी में ही है ,अगर हम खुश तो हमारे माँ बाप भी खुश हो जाते है। फिर क्यों इस दुनिया की झूठी बातों में आकर हम तीर्थ करे। मेरे हिसाब से तो सबसे पहले माँ बाप के पैर छुओ और तब दिन का कोई कार्य करो। अगर हमारा मन किसी की सेवा में लगता है तो हमारा जीवन भी सरल और अच्छा व्यतीत लगने लगेगा। जो भी भाई अपने माँ बाप की सेवा करता है। वही असली जिंदगी जीता है क्योकि माँ बाप के पैरो में जो जनत होती है वो और कही नहीं हो सकती।        माँ बाप सदा ये सोचता है की हमारा बच्चा बड़ा होकर

Manbhavn savn

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प्रस्तुत कविता में कवि ने सावन के बरसते बादल का मनोरम चित्र खींचा है। कविता के अंत में कवि ने जन -धन के जीवन में सावन का उल्लास भरने की कामना की है।  झम -झम ,झम -झम मेघ बरसते है सावन के , छम -छम -छम गिरती बुँदे तरुओं से छन के।  चम -चम दिन के तम में सपने जगते मन के।         पंखो से रे ,फैले -फैले ताड़ो के दल ,       लम्बी -लम्बी अंगुलियां है ,चौड़े करतल।        तड़ -तड़ पड़ती धार वारि की उन पर चंचल ,      टप -टप झरती कर मुख से जल बुँदे झलमल।  नाच रहे पागल हो ताली दे -दे चल -दल, झूम -झूम सिर नीम हिलाती सुख से विह्ळ ! हरसिंगार झरते बेला -कलि बढती प्रतिपल , हँसमुख हरियाली में खगकुल गाते मंगल।      दादुर टर -टर करते झिल्ली बजती झन -झन , 'म्याव ' 'म्याव 'रे मोर , 'पीउ ' 'पीउ 'चातक के गण।  उड़ते सोनबालक ,आद्र -सुख से कर क्रन्दन , घुमड़  घुमड़ घिर मेघ गगन में भरते गर्जन।    रिमझीम -रिमझीम क्या कुछ कहते बूंदो के स्वर , रोम सिहर उठते छूते वे भीतर अन्तर।  धाराओं पर धाराए झरती धरती पर  रज के कण -कण में तृण